Wednesday, January 20, 2010

मैं खुद में मगन रहता हूं-सलमान खान

सलमान खान की अनिल शर्मा निर्देशित वीर को पीरियड फिल्म माना जा रहा है। निर्देशक अनिल शर्मा और लेखक-अभिनेता सलमान खान से हुई बातचीत का निष्कर्ष निकालें तो इसे कास्ट्यूम ड्रामा कहना ज्यादा उचित होगा। यह फिल्म इतिहास या ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और न ही वीर कोई ऐतिहासिक चरित्र है।
पीरियड फिल्म तथ्यपरक और काल्पनिक दोनों हो सकती हैं, लेकिन उनमें कालविशेष और परिवेश पर खास ध्यान दिया जाता है। पिंजर के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी मानते हैं, ''हर फिल्म एक लिहाज से पीरियड फिल्म होती है, क्योंकि उसमें किसी न किसी काल के परिवेश को दर्शाया जाता है। अपने यहां पीरियड के नाम पर कास्ट्यूम ड्रामा की फिल्में बनती रही हैं।''
मुगलेआजम, ताजमहल, सिकंदर, पाकीजा आदि कई फिल्में इसी श्रेणी में आती हैं। अगर वास्तविक पीरियड फिल्मों की बात करें तो शतरंज के खिलाड़ी, गर्म हवा, जुनून, पिंजर और जोधा अकबर जैसी फिल्मों का उल्लेख किया जा सकता है। लगान और गदर भी पीरियड फिल्में मानी जाती हैं, लेकिन उनमें कल्पना की छूट ली गयी है।
अनिल शर्मा की वीर भव्यता और विशालता का आभास दे रही है। उन्होंने सीजी और वीएफएक्स इफेक्टस से यह भव्यता हासिल की है। उन्होंने पिंडारी समुदाय पर शोध किया और करवाया है। सलमान खान ने उन्नीसवीं सदी के परिवेश के मुताबिक वेशभूषा भी धारण की है, पर आप ने गौर किया होगा कि सलमान खान का कवच ग्लैडिएटर के हीरो के कवच से प्रेरित लग रहा है। इस फिल्म पर विदेशी फिल्मों की मेकिंग का प्रभाव है। वीर इसलिए उल्लेखनीय है कि सलमान खान जैसे पॉपुलर स्टार ने पीरियड करने की हिम्मत दिखायी और उसे पूरे जोर-शोर से प्रचारित भी कर रहे हैं।
क्या है वीर के पीछे और कितनी करनी पड़ी मशक्कत, प्रस्तुत है सलमान खान से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
'वीर' में क्या जादू बिखेरने जा रहे हैं आप?
मुझे देखना है कि दर्शक क्या जादू देखते हैं। एक्टर के तौर पर अपनी हर फिल्म में मैं बेस्ट शॉट देने की कोशिश करता हूं। कई बार यह उल्टा पड़ जाता है, दर्शक फिल्म ही रिजेक्ट कर देते हैं।
वीर जैसी पीरियड फिल्म का खयाल कैसे आया? आपने क्या सावधानियां बरतीं?
यहां की पीरियड फिल्में देखते समय मैं अक्सर थिएटर में सो गया हूं। ऐसा लगता है कि पिक्चर जिस जमाने के बारे में है, उसी जमाने में रिलीज होनी चाहिए थी। डायरेक्टर फिल्म को सीरियस कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन दिनों कोई हंसता नहीं था। सोसायटी में ह्यूमर नहीं था। लंबे सीन और डायलाग होते थे। 'मल्लिका-ए-हिंद पधार रही हैं' और फिर उनके पधारने में सीन निकल जाता था। इस फिल्म से वह सब निकाल दिया है। म्यूजिक भी ऐसा रखा है कि आज सुन सकते हैं। पीरियड फिल्मों की लंबाई दुखदायक होती रही है। तीन, साढ़े तीन और चार घंटे लंबाई रहती थी। उन दिनों 18-20 रील की फिल्मों को भी लोग कम समझते थे। अब वह जमाना चला गया है। इंटरेस्ट रहने तक की लेंग्थ लेकर चलें तो फिल्म अच्छी लगेगी। आप सेट और सीन के लालच में न आएं। यह फिल्म हाईपाइंट से हाईपाइंट तक चलती है। इस फिल्म के डायलाग भी ऐसे रखे गए हैं कि सबकी समझ में आए। यह इमोशनल फिल्म है। एक्शन है। ड्रामा है।
इस फिल्म के निर्माण में आप ने अनिल शर्मा से कितनी मदद ली है?
उन्होंने इस फिल्म को अकल्पनीय बना दिया है। वीर के सीन करते हुए मुझे हमेशा लगता रहा कि मैं उन्नीसवीं सदी में ही पैदा हुआ था। कास्ट्यूम और माहौल से यह एहसास हुआ। वह जरूरी भी था। हमें दर्शकों को उन्नीसवीं सदी में ले जाना था। फिल्म देखते हुए पीरियड का पता चलना चाहिए ना?
पिंडारियों को लुटेरी कौम माना जाता रहा है। आप उस कौम के हीरो को 'वीर' के रूप में पर्दे पर पेश कर रहे हैं। इस तरफ ध्यान कैसे गया?
पिंडारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुद को एकजुट किया था। वे मूल रूप से किसान थे। जब उन्हें लूट लिया गया तो वे भी लूटमार पर आ गए, लेकिन उनका मकसद था आजादी । आजादी की चिंगारी उन्होंने लगायी थी। मैंने एक फिल्म देखी थी बचपन में, उस से प्रेरित होकर मैंने पिंडारियों पर इसे आधारित किया। भारत का इतिहास अंग्रेजों ने लिखा, इसलिए अपनी खिलाफत करने वाली कौम को उन्होंने ठग और लुटेरा बता दिया। इस फिल्म में हम लोगों ने बताया है कि पिंडारी क्या थे?
आप ने पिता जी की मदद ली कि नहीं? आप दोनों ने कभी साथ में काम किया है क्या?
उन्होंने मेरी एक फिल्म लिखी थी पत्थर के फूल। उसके बाद उन्होंने लिखना ही बंद कर दिया। वे मेरे पिता हैं तो उनकी मदद लेना लाजिमी है। किसी भी फिल्म में कहीं फंस जाते हैं तो उनकी मदद लेते हैं। और वे तुरंत सलाह देते हैं।
इस फिल्म के लिए अलग से क्या मेहनत करनी पड़ी?
पहले मैंने बॉडी पर काम शुरू किया। फिर पता चला कि उस समय लोग सिक्स पैक नहीं बनाते थे। वे हट्टे-कट्टे रहते थे। उनकी टांगों और जांघों में भी दम रहता था। इसके बाद देसी एक्सरसाइज आरंभ किया। माडर्न तरीके में लोग धड़ से नीचे का खयाल नहीं रखते। ऐसा लगता है कि माचिस की तीलियों पर बाडी रख दी गयी हो। मुझे मजबूत व्यक्ति दिखना था।
अभी फिल्मों के प्रमोशन पर स्टार पूरा ध्यान देने लगे हैं। अब तो आप भी मीडिया से खूब बातें करते हैं?
करना पड़ता है। आप के लिए तो एक इंटरव्यू है, लेकिन मुझे अभी पचास इंटरव्यू देने हैं। फिर भी पता चलेगा कि कोई छूट गया। पहले का समय अच्छा था कि ट्रेलर चलता था। फिल्मों के पोस्टर लगते थे और दर्शक थिएटर आ जाते थे। अभी तो दर्शकों को बार-बार बताना पड़ता है कि भाई मेरी फिल्म आ रही है। पहले थोड़ा रिलैक्स रहता था। कभी मूड नहीं किया तो काम पर नहीं गए। अभी ऐसा सोच ही नहीं सकते। प्रमोशन, ध्यान, मेहनत सभी चीज का लेवल बढ़ गया है!
आपकी आंखों में हमेशा एक जिज्ञासा दिखती है। ऐसा लगता है कि आप हर आदमी को परख रहे होते हैं। क्या सचमुच ऐसा है?
वास्तव में मैं खुद में मगन रहता हूं। ऐसा लग सकता है कि मैं आप को घूर या परख रहा हूं, लेकिन माफ करें ़ ़ ़वह मेरे देखने का अंदाज है। मैं क्या लोगों को परखूंगा? आप लोग मुझे तौलते-परखते हैं और फिर लिखते हैं।
कौन थे पिंडारी?
पिंडारी एक योद्धा कौम थी। दो सौ साल पहले मुगल शासन के अंत के समय यह अस्तित्व में आयी। पिंडारी साहस, पराक्रम, तलवार बाजी और घुड़सवारी के खास अंदाज के लिए प्रसिद्ध थे। पिंडारी कौम में देश के अलग-अलग राज्यों के लोग थे। उन्होंने मुगल शासन का अंत करने में मराठा शासकों की बहुत मदद की। पिंडारियों ने ब्रिटिश शासकों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा। वे अपनी जन्मभूमि के लिए अंतिम समय तक लड़ते रहे। पिंडारियों से आजिज आकर 1817 में ब्रिटिश शासक लॉर्ड हैस्टिंग्स ने उनके खिलाफ पिंडारी वॉर छेड़ दिया। दो साल की लड़ाई के बाद अंत में ब्रिटिश शासक पिंडारियों पर नियंत्रण पाने में सफल हुए। जीवित पिंडारी लीडर एवं उनके परिवार को ब्रिटिश शासकों द्वारा गोरखपुर में जमीन और पेंशन देकर बसा दिया गया!
-अजय ब्रह्मंात्मज/ रघुवेन्द्र

Thursday, January 14, 2010

शादी..! किसी से नहीं: जेनिलिया डिसूजा | मुलाकात

जेनिलिया डिसूजा की फिल्म चांस पे डांस प्रदर्शन के लिए तैयार है, लेकिन कोई उनकी इस फिल्म को लेकर बात नहीं कर रहा है। उनकी चर्चा है तो बस उनकी शादी को लेकर। चर्चा है कि रितेश देशमुख के साथ जेनिलिया इस साल सात फेरे लेने जा रही हैं। रितेश और जेनिलिया ने आज तक अपने इस रिश्ते को दुनिया के सामने कभी स्वीकार नहीं किया है। ऐसे में दोनों की शादी की बात चौंकाती है। पिछले दिनों जेनिलिया से हुई मुलाकात के दौरान फिल्म चांस पे डांस, रितेश से सीक्रेट रिश्ते, शादी की योजना और इस साल की व्यस्तता के बारे में बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके अंश..
चांस पे डांस शीर्षक का क्या मतलब है?
यह एक स्ट्रगलर ऐक्टर समीर की कहानी है। वह रोज ऑडीशन देता है, लेकिन रिजेक्ट हो जाता है। अंत में उसे एक दिन बड़ा चांस मिलता है और वह अपना सौ प्रतिशत देकर उसे कैश करता है। इसका मतलब है कि यदि आपको चांस मिलता है, तो आप उसे जाने मत दीजिए, सौ प्रतिशत दीजिए और अपने सपने पूरे कर लीजिए।
आपने निजी जीवन में कितनी बार चांस पे डांस किया है?
मैंने बहुत ज्यादा चांस पे डांस किया है। मैं कभी एक्टिंग को करियर नहीं बनाना चाहती थी, लेकिन जैसे-जैसे मुझे मॉडलिंग और फिर एक्टिंग में चांस मिला, मैंने डांस किया। तभी आज इस मुकाम पर हूं।
क्या इस फिल्म के संदर्भ में कहा जा सकता है कि कट्रीना कैफ और जिया खान के बाद आपको चांस मिला, तो आपने फौरन लपक लिया?
लोग ऐसा कह सकते हैं कि मैंने चांस पे डांस किया है, लेकिन जब मुझे यह फिल्म ऑफर हुई थी, तब नई स्क्रिप्ट थी। उस समय यदि मैं यह फिल्म नहीं करती, तो कोई और कर लेता।
फिल्म में आपको क्या अलग और चैलेंजिंग लगा, जिसकी वजह से इससे जुड़ीं?
चैलेंजिंग नहीं, मुझे इसका सब्जेक्ट इंट्रेस्टिंग लगा। इसका सब्जेक्ट सबकी लाइफ से कनेक्ट करता है। सबकी लाइफ में एक स्टेज पर स्ट्रगल पीरियड आता है। फिल्म इसी लेवल पर ऑडियंस से कनेक्ट करती है। यह मेरे लिए मोस्ट एक्साइटिंग था।
क्या फिल्म ने आपकोअपने स्ट्रगल के दिनों की याद दिलाई?
मैं फिल्म में कोरियोग्राफर सोनिया का किरदार निभा रही हूं। वह भी स्ट्रगलर है, लेकिन मैं अपने किरदार से अधिक समीर के किरदार से रिलेट करती हूं। मैं भी ऑडीशन देने जाती थी और रिजेक्ट होती थी। जो भी कलाकार फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं है, उसे इस तरह के पीरियड से गुजरना पड़ता है।
शाहिद कपूर को ऐक्टर और को-आर्टिस्ट के रूप में आपने कैसा पाया?
शाहिद अच्छे ऐक्टर हैं। वे बहुत अच्छे को-आर्टिस्ट भी हैं। हम दोनों पहले दिन से अच्छे दोस्त बन गए थे, इसलिए चांस पे डांस की पूरी शूटिंग को हमने एंज्वॉय किया। उनके साथ काम करने का फैंटास्टिक एक्सपिरीयंस रहा।
आप शाहिद कपूर की पहली हीरोइन हैं, जिनके साथ लिंकअप की खबरें नहीं आई?

अरे हां, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। ताज्जुब की बात है। मुझे शाहिद से पूछना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि शायद शाहिद को मुझमें इंट्रेस्ट नहीं था।
आप रितेश देशमुख से प्यार करती हैं?
नहीं, मैं सिंगल हूं। मैं रितेश से प्यार नहीं करती। हम कपल नहीं हैं।
फिर आप दोनों की शादी की खबर इन दिनों सुर्खियों में है?
मैं जब रितेश से प्यार ही नहीं करती, तो उनसे शादी कैसे संभव है। मैं अभी किसी से शादी नहीं कर रही हूं। मैं ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहती हूं। प्लीज, मैं लोगों से यही कहूंगी कि मेरी शादी की अफवाह फैलाकर मुझे इंडस्ट्री से बाहर न करें।
फिल्म चांस पे डांस के अलावा इस साल आपको लोग और किन फिल्मों में देखेंगे?
मेरी दो फिल्में हुक या क्रुक और इट्स माई लाइफ भी रिलीज के लिए तैयार हैं। हुक या क्रुक में मैंने वकील का किरदार निभाया है और इट्स माई लाइफ में मेरा अलग तरह का किरदार है, जो मेरे लिए चैलेंजिंग था। इस रोल के बारे में मैं ज्यादा नहीं बता सकती।
जेनिलिया का जन्म 5 अगस्त 1987 को इंग्लैंड में हुआ।
मंगलोर की एक कैथोलिक फेमिली में जन्मीं जेनिलिया की मां का नाम जेनिफर और पिता का नाम नील है।
जेनिलिया मुंबई में पली-बढ़ी हैं। उनकी पढ़ाई भी यहीं हुई है।
जेनिलिया की पहली फिल्म 2003 में आई तुझे मेरी कसम, जो तेलुगू की नूव्वे कावली की रिमेक थी।
जेनिलिया की काफी समय बाद 2008 में आई फिल्म मेरे बाप पहले आप, लेकिन उन्हें चर्चा मिली इसी साल आई आमिर खान निर्मित फिल्म जाने तू या जाने ना से।
जेनिलिया की आने वाली दो फिल्में हैं डेविड धवन निर्देशित हुक या क्रुक और अनीस बज्मी निर्देशित इट्स माई लाइफ।


-raghuvendra singh

रिस्क लेना आदत है: प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा ने नए साल का स्वागत न तो हरमन बावेजा के साथ रहकर किया और न ही शाहिद कपूर के साथ। पुराने प्रेमियों को छोड़कर उन्होंने न्यूयॉर्क में रणबीर कपूर के साथ नए साल का जश्न धूमधाम से मनाया। प्रियंका ने यह कदम उठाकर बताने की कोशिश तो नहीं की है कि पुराने साल के साथ पुराने प्रेमी भी अब उनके लिए बीता कल बन चुके हैं। हरमन और शाहिद के नाम पर प्रियंका कहती हैं, निजी लाइफ के बारे में बात करना मुझे पसंद नहीं है। मीडिया अपने मन से मेरा नाम कभी इस ऐक्टर से तो कभी उस ऐक्टर से जोड़ देती है। मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता। मुझे इस संबंध में कुछ कहना भी नहीं है। मैंने अपने लिए कुछ सीमाएं बना रखी हैं। निजी लाइफ के बारे में बात न करना उनमें से एक है।
बात को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका कहती हैं, मैं न्यूयॉर्क में अपनी नई फिल्म अंजाना अंजानी की शूटिंग के लिए आई हूं। रणबीर फिल्म में मेरे अपोजिट हैं। हम दोनों साथ यहां आए। प्रियंका आश्चर्य प्रकट करते हुए कहती हैं, मेरी फिल्म प्यार इंपासिबल रिलीज हो चुकी है और हैरानी की बात यह है कि अभी तक मेरा नाम फिल्म के हीरो उदय चोपड़ा के साथ नहीं जोड़ा गया। ऐसा पहली बार हो रहा है। थैंक गॉड! चलो, किसी को तो लोगों ने छोड़ा।
सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, रितिक रोशन, शाहिद कपूर जैसे स्टार कलाकारों के साथ काम करने वाली स्टार ऐक्ट्रेस प्रियंका का उदय चोपड़ा के साथ वाली फिल्म प्यार इंपासिबल में काम करना लोगों को हजम नहीं हो रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उदय न तो पापुलर ऐक्टर हैं और न ही उनकी दर्शकों के बीच खास डिमांड। कहा जा रहा है कि उदय के साथ काम करके प्रियंका ने बहुत बड़ा रिस्क लिया। यह नए साल में प्रदर्शित होने वाली प्रियंका की पहली फिल्म है। वे इस बारे में कहती हैं, रिस्क लेना मेरी आदत है। रिस्क के बिना लाइफ में मजा नहीं आता। मैंने जब फैशन की थी, तब भी कुछ लोगों ने कहा था कि वूमेन ओरिएंटेड फिल्म देखने कौन जाएगा? आज रिजल्ट सबके सामने है। मैंने अपने करियर में हमेशा रिस्क लिया है। मैंने हमेशा वही फिल्में कीं, जिन्होंने मुझे चैलेंज किया। तभी आज इस मुकाम पर हूं।
प्रियंका आगे कहती हैं, फिल्म प्यार इंपासिब में अभय का किरदार कोई और उतनी खूबसूरती से नहीं कर सकता था, जितनी खूबसूरती से उदय ने किया है। यह उनकी ही फिल्म है। अभय के किरदार के लिए उदय और अलीशा के लिए मैं फिट हूं। हमारी केमिस्ट्री दर्शकों को अच्छी लगेगी। फिल्म के बारे में प्रियंका आगे कहती हैं, यह मेरे करियर की चैलेंजिंग फिल्म है। वैसे, यह बात मैं हर फिल्म के प्रदर्शन के समय कहती हूं, लेकिन क्या करूं? मेरी हर फिल्म होती ही ऐसी है। प्यार इंपासिबल एक साधारण लड़के और बेहद खूबसूरत लड़की की कहानी है। अभय में कांफिडेंस नहीं है, जबकि अलीशा कंप्लीट एंटरटेनर है। अभय को लगता है कि वह परफेक्ट गर्ल है, लेकिन यह उसका नजरिया है। अलीशा पीआर ऐंड मार्केटिंग में है। वह वैसी नहीं है जैसी अभय की आंखों से दिखती है। अभय और अलीशा का इंपासिबल प्यार पासिबल होता है या नहीं, यही फिल्म का सीक्रेट है।
बरेली की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा खुद को इंटेलीजेंट, इंडीपेंडेंट, एंबीशियस, फन लविंग और वैल्यूज और थिंकिंग में इंडियन मानती हैं। वे बताती हैं कि उनकी थिकिंग और वैल्यूज आज भी वही हैं। पिछले दो सालों से वे प्रोफेशनली एक्सपेरिमेंटिंग हो गई हैं। प्रियंका कहती हैं, जब मैंने एक्टिंग करनी शुरू की थी, तब बहुत कम उम्र की थी। तब उतनी समझ नहीं थी, लेकिन पांच-छह साल काम करने के बाद मैंने समझ लिया कि किस तरह की फिल्में मुझे करनी चाहिए। मेरी कोशिश होती है कि हर फिल्म में नए लुक, मजेदार किरदार और डिफरेंट स्टाइल में दिखूं, ताकि दर्शकों को फिल्म देखकर लगे कि वे नई प्रियंका को देख रहे हैं।
गुजरे साल फैशन फिल्म के रोल के लिए कई पुरस्कार बटोरने वाली प्रियंका यह सोचकर दुखी हैं कि पुरस्कार लेने के लिए वे उपस्थित नहीं होंगी। वे कहती हैं, 2009 में मुझे फैशन के रोल के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड मिला। इस साल कमीने में मेरे काम की लोगों ने तारीफ की। स्वीटी के किरदार में लोगों ने मुझे पसंद किया। अफसोस की बात है कि इस फिल्म के लिए मुझे पुरस्कार मिलते हैं, तो मैं ले नहीं सकूंगी। दरअसल, मैं न्यूयॉर्क में ढाई महीने के लंबे शेड्यूल के लिए आई हूं। सिद्धार्थ आनंद मुझे आने नहीं देंगे।
नए साल में अपनी व्यस्तताओं के बारे में प्रियंका बताती हैं, फिल्म अंजाना अंजानी का ढाई महीने का लंबा शेड्यूल खत्म करने के बाद मैं अप्रैल में विशाल भारद्वाज की अनाम फिल्म के लिए डेढ़ महीने आउटडोर पर जाऊंगी। इस साल मैं अधिकतर आउटडोर शूटिंग में व्यस्त हूं।
-raghuvendra singh

बिग बॉस जैसा कोई शो नहीं: अदिति गोवित्रीकर

डॉक्टर, मॉडल और ऐक्ट्रेस अदिति गोवित्रीकर केलिए रियलिटी शो बिग बॉस 3 का दूसरा अनुभव था। इसके पहले उन्होंने फीयर फैक्टर -खतरों के खिलाड़ी में हिस्सा लिया था। पहले रियलिटी शो में अदिति ने शारीरिक चुनौतियों को स्वीकार किया और दूसरे में मानसिक चुनौतियों को। वे ग्यारह सप्ताह परिवार से दूर, अलग-अलग पृष्ठभूमि और भिन्न सोच के लोगों के साथ तालमेल बिठाती रहीं। कलर्स के इस चर्चित शो से बाहर निकलने के बाद अदिति पाठकों के सामने अपनी बात रख रही हैं। उनकी बातें, उन्हीं की जुबानी..
क्या पाया, क्या खोया?
मैंने बिग बॉस के घर में अपने बच्चों को सबसे अधिक मिस किया। इतने लंबे समय तक कभी बच्चों से दूर नहीं रही। मैं दूर जाती भी थी, तो बच्चों से लगातार संपर्क में रहती थी। मैंने ग्यारह सप्ताह उनका साथ इस शो में जाकर खोया और दूसरी तरफ इस शो में मैंने तीन अच्छे दोस्त तनाज करीम, बख्तियार ईरानी और शमिता शेट्टी पाए। मुझे अलग-अलग पर्सनैल्टी और बैकग्राउंड के लोगों से बात करने और साथ रहने का अनुभव मिला। अब मैं अपने बारे में जान गई हूं कि मैं क्या कर सकती हूं।
रियलिटी शो में मसाला जरूरी
बिग बॉस के घर से निकलने के बाद मुझे रियलाइज हुआ कि इस तरह के शो में जो लोग मसाला दे सकते हैं, हंगामा कर सकते हैं, वही असली खिलाड़ी हैं। वे शो के फाइनल तक जाते हैं। शमिता और तनाज जैसे सीधे और अच्छे लोग ऐसे शो में नहीं रह सकते। मैं बिग बॉस के घर में यही सोचकर रही कि यह मेरा काम है। मैंने खुद चौबीस घंटे कैमरे के सामने रहने का फैसला किया था। शो ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है, जो जिंदगी में हमेशा काम आएगा।
शो की रियलिटी
बिग बॉस जैसा कोई रियलिटी शो नहीं है। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रही हूं। इससे पहले मैंने खतरों के खिलाड़ी में हिस्सा लिया था, लेकिन उसका अनुभव अलग था। एक चारदीवारी में दुनिया से संपर्क खत्म करके चौरासी दिन तक वही चेहरे देखना सजा की तरह है। इस शो में दो दोस्त दुश्मन बन सकते हैं, लेकिन यदि आप तेज दिमाग के हैं और खुद पर कंट्रोल रखना जानते हैं, तो इसमें रह सकते हैं। मैंने शो को चुनौती मानकर स्वीकार किया था और खुश हूं कि मैं शो के फाइनल के करीब तक पहुंची।
फिल्मों पर फोकस
मैंने बिग बॉस में जाने से पहले दो फिल्में साइन की थीं। एक मराठी और एक हिंदी। सबसे पहले उनकी शूटिंग खत्म करूंगी। उसके बाद मैं नए काम के लिए हां कहूंगी। मैं कुछ दिन अपने बच्चे के साथ रहूंगी। पिछले दिनों मेरी फिल्म दे दना दन रिलीज हुई। उसे देखूंगी। पहले की तरह फिल्मों पर मैं फोकस करूंगी। यदि कोई मजेदार टीवी शो का ऑफर आया, तो उसके बारे में भी विचार करूंगी।
-raghuvendra singh

Tuesday, January 5, 2010

मेरी ज़िन्दगी में कोई नहीं है- कंगना राणावत

कंगना राणावत के लिए 2009 मिला-जुला साल रहा। राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज से एक ओर उनकी फिल्मोग्राफी में एक और सफल फिल्म का नाम जुड़ा, जिसके लिए वे बेहद खुश हुईतो दूसरी तरफ ब्वॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन से ब्रेकअप के बाद वे फिर से अकेली हो गई। बीते साल ने कंगना को बहुत कुछ सिखाया है। इसने उन्हें और भी प्रोफेशनल बना दिया। पॉजिटिव सोच वाली और मेहनती कंगना इन बातों को भुलाकर उत्साह और नई उम्मीदों के साथ 2010 का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। प्रस्तुत है, पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ और नए साल से जुड़ी उम्मीदों के संदर्भ में कंगना से कुछ सवाल..
एक साल पहले और आज की कंगना में काफी बदलाव नजर आ रहा है। अब आप मैच्योरिटी के साथ चीजें हैंडल करने लगी हैं। इस बदलाव की वजह क्या है?
जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई थी, तब केवल 18 साल की थी। वक्त के साथ ग्रोथ और मैच्योरिटी नॉर्मल बात है। वक्त के साथ इंसान में बदलाव आता ही है। एक्सपीरियंस बहुत कुछ सिखा देता है। यह हर इंसान के साथ होता है।
पहले की अपेक्षा अब आप मीडिया के बीच कम नजर आती हैं, क्यों?
मैंने कभी जान-बूझकर मीडिया के बीच रहने की कोशिश नहीं की। मेरा फोकस हमेशा अपने काम पर रहा है। फिल्म की रिलीज के आसपास मीडिया से ज्यादा इंटरेक्शन होता है। आजकल मैं फिल्मों की शूटिंग में ज्यादा व्यस्त हूं और आउटडोर शेड्यूल ज्यादा है, तो मुंबई में कम ही रहती हूं। इसीलिए मीडिया में मेरी अपियरेंस कम हो गई है.. और कोई बात नहीं है।
इधर फिल्मों में आपकी व्यस्तता अधिक बढ़ गई है। खासकर अध्ययन सुमन से अलगाव के बाद, तो क्या माना जाए कि व्यस्त रहकर आप निजी जीवन के खालीपन को भरने की कोशिश कर रही हैं?
ऐसा कुछ नहीं है। ये फिल्में मैंने कई महीने पहले साइन की थीं। मेरा फोकस इस समय काम पर है और मेरा ध्यान उसी पर लगा है।
आजकल आपकी जिंदगी में कौन है?
कोई नहीं। मैं एकदम खाली हूं।
नए साल में प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्मों के बारे में बताएंगी। उसमें आप क्या नया करने जा रही हैं?
मेरी फिल्म वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई, तनु वेड्स मनु, नॉक आउट, नो प्रॉब्लम आदि की शूटिंग अभी चल रही है। ये फिल्में 2010 में आएंगी। वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई मेरे करियर की पहली पीरियड फिल्म है। तनु वेड्स मनु और नो प्राब्लम कॉमेडी फिल्में हैं। इस जॉनर की फिल्म मैं पहली बार कर रही हूं। मैं बहुत एक्साइटेड हूं। उम्मीद कर रही हूं कि इन फिल्मों में मुझे नए अंदाज में दर्शक स्वीकार करेंगे।
आपकी फिल्म काइट्स को इंटरनेशनल मार्केट में काफी प्रमोट किया जा रहा है। क्या आपको इस फिल्म से इंटरनेशनल लेवल पर आपकी मांग बढ़ने की संभावना दिखती है?
एक आर्टिस्ट के नजरिए से मैं कह सकती हूं कि काइट्स बहुत अच्छी फिल्म है। यह मेरे करियर की महत्वपूर्ण फिल्म भी है। उसके प्रोमोशन और पोजीशनिंग के बारे में प्रोड्यूसर ज्यादा बात कर सकते हैं। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती। हां, इतना तय है कि यदि यह सफल होगी, तो मुझे इसका हर तरह से और हर जगह फायदा मिलेगा।
नए साल से क्या उम्मीदें हैं?
मेरी फिल्मों को दर्शक पसंद करें। मुझे अच्छी फिल्मों में काम करने का मौका मिले। मुझे चैलेंजिंग किरदार मिलें। एक कलाकार होने के नाते मैं यही उम्मीदें कर सकती हूं।
-raghuvendra Singh

Monday, January 4, 2010

असफल विन्दू की पहली सफलता

पैंतालीस वर्षीय विंदू दारा सिंह की पहचान अब तक पॉपुलर सीनियर एक्टर एवं रेसलर दारा सिंह के बेटे की थी। पन्द्रह वर्ष से एक्टिंग में सक्रिय विंदू फिल्म इंडस्ट्री में सलमान खान और अक्षय कुमार के बेस्ट फ्रेंड के रूप में पहचाने जाते थे, लेकिन 'बिग बॉस' तृतीय रिएलिटी शो का विजेता घोषित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है।
[लीड से साइड रोल का सफर]
विंदू ने 1994 में अपने पिता दारा सिंह निर्मित फिल्म करन से एक्टिंग में डेब्यू किया। यह फिल्म चली नहीं तो दो वर्ष उपरांत दारा सिंह ने विंदू को लेकर पंजाबी फिल्म रब दियां राखां बनायी। दोनों फिल्मों की असफलता के बाद में विंदू ने टीवी का रूख किया। आंखें, चंद्रमुखी, श्श्श फिर कोई है, ब्लैक जैसे धारावाहिकों में उन्होंने निगेटिव एवं पॉजिटिव रोल किए, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी।
[सफलता की उम्मीद]
विंदू को पहली बार सफलता तब मिली जब उन्होंने अपने पिता की तरह जय श्री हनुमान धारावाहिक में हनुमान का रोल निभाया। बाद में मैंने प्यार क्यूं किया, पार्टनर, मुझसे शादी करोगी और इस साल प्रदर्शित कमबख्त इश्क एवं मारुति मेरा दोस्त फिल्म में वह साइड रोल में दिखे। 'बिग बॉस' में जीत से कॅरियर में तेजी आने की आस लिए विंदू ने कहा, मैं रीचार्ज हो गया हूं। यह विजय निश्चित ही मेरे कॅरियर को नयी दिशा देगी।
'बिग बॉस' प्रथम के विजेता राहुल रॉय और 'बिग बॉस' द्वितीय के विजेता आशुतोष कौशिक आज कहीं नजर नहीं आते। 'बिग ब्रदर' में जीत से शिल्पा शेंट्टी के फिल्मी कॅरियर को खास लाभ नहीं हुआ था। ऐसे में विंदू का उम्मीदें रखना कितना सही है? विंदू कहते हैं कि मेरे दोस्त मानते हैं कि अब मैं बड़ा टीवी स्टार बन गया हूं, लेकिन मेरे पास कोई फिल्म और सीरियल नहीं है। मैं अच्छे काम का इंतजार कर रहा हूं। फिलहाल मैं अपनी पत्नी डीना और बेटी एमीलिया के साथ मुंबई के नए घर में समय बिताऊंगा।
उम्मीद करते हैं कि विंदू दारा सिंह के कॅरियर पर इस जीत का असर नजर आएगा।
-रघुवेन्द्र सिंह

महबूब स्टूडियो- यहीं परवान चढ़ा दिलीप-मधुबाला का प्यार

सलमान खान ने इंटरव्यू के लिए एक बार फिर महबूब स्टूडियो को चुना। मुंबई में बांद्रा (वेस्ट) के हिल रोड पर स्थित महबूब स्टूडियो उनके घर से कुछ कदम की दूरी पर है। वे अपनी वैनिटी वैन के बगल में कुर्सी पर आराम से बैठे वीर फिल्म की टीम से गुफ्तगू कर रहे हैं। सलमान खान की वैनिटी वैन के ठीक सामने ऐश्वर्या राय बच्चन और रितिक रोशन की वैनिटी वैन खड़ी है। वे सामने के स्टेज तीन में गुजारिश फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं। शाम के टी-ब्रेक की घोषणा होती है और स्टेज तीन के सामने के एरिया में हलचल मच जाती है। छोटा सा प्रांगण टेक्नीशियनों एवं जूनियर आर्टिस्ट से भर जाता है।
महबूब स्टूडियो में यह रोज का नजारा है। निर्माण के 55 साल बाद भी इस स्टूडियो की लोकप्रियता और डिमांड फिल्मकारों के बीच किसी नए स्टूडियो के समान बनी हुई है। वैसे, महबूब स्टूडियो की इमारतें अब पुरानी दिखने लगी हैं। दीवारों के रंग धूमिल हो चुके हैं। सिर्फ महबूब स्टूडियो के ऑफिस के बगल वाली बिल्डिंग थोड़ी चमकती है। इसी बिल्डिंग में महबूब खान के स्वर्गीय बड़े बेटे अयूब खान की फैमिली एवं मंझले बेटे इकबाल खान रहते हैं। प्रांगण के मध्य में स्थित ऑफिस की भीतरी दीवारों पर महबूब खान की मदर इंडिया, आन, अंदाज, अमर आदि फिल्मों की टंगी तस्वीरें महबूब स्टूडियो के शानदार इतिहास को बयां करती हैं।
ऑफिस की दोमंजिला इमारत में प्रॉपर्टी रूम, मेकअप रूम, कारपेंटर रूम हैं। जानकार बताते हैं कि इसी इमारत के मेकअप रूम में दिलीप कुमार और मधुबाला का प्रेम परवान चढ़ा था। महबूब खान की उन दोनों पर कड़ी नजर रहती थी इसलिए वे मुश्किल से यहां छुपकर बैठ पाते थे। इसी इमारत के दूसरे तल पर एसी लगे एक कमरे में महबूब खान की फिल्मों के निगेटिव, रील, पोस्टर आदि सुरक्षित रखे हैं।
ऑफिस के ठीक पीछे स्टेज नंबर एक है। यह बेहद विशाल है। बायीं ओर स्टेज नंबर तीन है। स्टेज तीन के पीछे स्टेज चार है। स्टूडियो के इस सबसे छोटे स्टेज में ज्यादातर एड फिल्मों की शूटिंग होती है। उसके सामने स्टेज नंबर पांच एवं छह है तथा बगल में स्टेज नंबर दो है। दो नंबर स्टेज से सटी बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर महबूब रिकॉर्डिग स्टूडियो है। एक विशाल कक्ष एवं आमने-सामने छोटे-छोटे दो कमरे हैं। पुराने जमाने में विशाल कक्ष में लाइव ऑर्केस्ट्रा बजता था और एक छोटे कमरे में साउंड रिकॉर्डिग तथा दूसरे में सिंगर गाते थे। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल अपनी हर फिल्म का गाना यहीं रिकॉर्ड करते थे।
भारतीय सिनेमा के इतिहास को अपने आगोश में समेटे हुए महबूब स्टूडियो की ओल्ड चार्म के कारण लोकप्रियता आज भी बरकरार है। महबूब स्टूडियो के प्रांगण में छोटा सा हरा-भरा गार्डन है। गार्डन के दूसरी तरफ कैंटीन है। महबूब खान ने कैंटीन इसलिए बनवायी थी ताकि जूनियर कलाकारों और उनके वर्कर को चाय नाश्ते के लिए स्टूडियो से बाहर न जाना पड़े। कैंटीन के भीतर दीवार पर महबूब खान की बड़ी तस्वीर टंगी है। हंट्टे-कंट्टे चौड़ी छाती वाले महबूब खान लगता है कि अपनी विरासत पर गौरवान्वित हो रहे हैं!
[क्यों है लोकप्रिय]
1. स्टूडियो बांद्रा के हिल रोड पर है। बांद्रा एवं अंधेरी में अधिकतर फिल्म स्टार रहते हैं। उन्हें स्टूडियो पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगता।
2. स्टूडियो के बाहर बड़ी मार्केट है। शूटिंग के दौरान यदि प्रोडक्शन से जुड़ी किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो कहीं दूर नहीं जाना पड़ता।
3. स्टूडियो में फिल्म स्टार, निर्माता, निर्देशक एवं यूनिट के लोगों की गाड़ी खड़ी होने की क्षमता वाला बड़ा पार्किग स्पेस है।
4. स्टूडियो में शूटिंग के सभी उपकरण उपलब्ध हैं। अन्य स्टूडियो की तुलना में महबूब स्टूडियो में शूटिंग वाजिब दाम पर होती है।
[महबूब स्टूडियो का इतिहास]
1. महबूब खान ने 1942 में चार एकड़ जमीन खरीदी। 1950 में स्टूडियो का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1954 में स्टूडियो बनकर तैयार हुआ। स्टूडियो की जमीन एवं निर्माण की लागत बीस लाख रूपए से अधिक आयी थी।
2. स्टूडियो में पहले छह स्टेज थे। तीन विशाल एवं तीन छोटे, लेकिन 1992 में महबूब रिकॉर्डिग स्टूडियो को स्टेज में तब्दील करने के बाद कुल सात स्टेज हो गए।
3. महबूब खान ने स्टूडियो का निर्माण होम प्रोडक्शन की फिल्मों की शूटिंग के लिए किया था, लेकिन बाद में गुरूदत्त, चेतन आनंद आदि की मांग पर वे इसे किराए पर देने लगे।
4. 1964 में महबूब खान के इंतकाल के बाद उनके बेटे अयूब खान, इकबाल खान एवं शौकत खान स्टूडियो को संभाल रहे हैं।
5. महबूब स्टूडियो में अब तक साढ़े तीन सौ से अधिक देसी-विदेशी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
-रघुवेन्द्र सिंह