Friday, July 17, 2020

"जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे"
शहर पराया था, लोग पराये थे मगर जो अपना था, वह था सपना। अपने आप पर भरोसा था। हौसले बुलंद थे। आज अभिनय में करियर बनाने वाले हर शख़्स की जुबां पर इनका नाम रहता है। हिंदी सिनेमा की किताब में कास्टिंग का एक नया अध्याय जोड़ने के बाद, अब यह फिल्म निर्देशन में उतर चुके हैं. पहली फिल्म है- दिल बेचारा। इस बार #रघुवार्ता में बातचीत फिल्म इंडस्ट्री की लोकप्रिय शख्सियत मुकेश छाबड़ा से।


बतौर निर्देशक आपकी पहली फिल्म दिल बेचारा रिलीज़ के लिए तैयार है. किस तरह की भावनाएं मन में उमड़-घुमड़ रही हैं?
ज़िन्दगी में हर पहला कदम मुश्किल होता है, इसलिए घबराहट तो होती है. दिल बेचारा बतौर निर्देशक मेरी पहली फिल्म है, इसलिए नर्वस हूँ कि कैसी प्रतिक्रियाएं मिलेंगी. लेकिन दिल से फिल्म बनायी है तो कॉन्फिडेंट भी हूँ.

मुंबई में पहला कदम रखने के बाद हम सब खुद से कुछ वादे करते हैं. आपको इस शहर में अपना पहला दिन और वो वादे याद हैं?
मुझे शहर में नाम कमाना था. मुझे फिल्मों से जुड़ना था. लेकिन उस वक़्त कुछ पता नहीं था कि क्या और कैसे करना है. कोई कुछ बताने वाला नहीं था मुझे. दिल में जज़्बा था, रास्ते अपने आप बनते चले गए.

आप वर्ष 2006 में मुंबई पहुंचे थे. उस समय कास्टिंग डायरेक्टर बनने का सपना तो कोई नहीं देखा करता था. आप किन सपनों के साथ आये थे?
मैं दिल्ली में NSD TIE में नौकरी करता था. मुंबई से निर्देशक अपनी फिल्मों की कास्टिंग के लिए दिल्ली आते थे तो हमारी मदद लेते थे. उस तरह मैं फिल्मों से जुड़ा। थियेटर से जुड़े होने के कारण मैं बहुत से एक्टर्स को जानता था. मैं हमेशा से फिल्मों में नाम बनाना चाहता था.

आपने एक्टर बनने की ट्रेनिंग ली थी, फिर आप कास्टिंग डाइरेक्टर क्यों बने और अब निर्देशन में आए आप?
एनएसडी TIE में जब मैंने नौकरी के लिए अप्लाई किया तो उसकी योग्यता ग्रेजुएशन थी. और रंगमंच की ट्रेनिंग इसलिए मैंने दिल्ली में श्रीराम सेंटर से एक्टिंग का कोर्स भी किया. एक्टर बनने का मेरा सपना नहीं था. 

अगर आप इस इंडस्ट्री से नहीं हैं तो आपको शुरू में किस तरह की चुनौतियों से पार पड़ना होता है?
अगर आप थियेटर कल्चर से आ रहे हैं तो आपको फिल्म कल्चर में खुद को ढालना पड़ता है. आपको नए लोगों को जानना पड़ता है. इस शहर में आपका काम ही आपको पहचान दिलाता है. आपके काम के साथ-साथ आपकी पहचान लोगों से बढ़ती चली जाती है. अपने आरंभिक दिनों में जब मैं म्हाडा में रहता था तो मेरी सुबह की शुरुआत इससे होती थी कि आज किससे और कैसे मिला जा सकता है.

कैसी तैयारियों की सलाह देंगे नयी प्रतिभाओं को?
जो भी इस शहर में उन्हें खुद पर भरोसा रखने की ज़रूरत है. पॉज़िटिव बने रहने की ज़रूरत है. संयम न खोएं. इस इंडस्ट्री में काम सबके लिए है. टैलेंटेड लोगों को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है. 

कहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री रिश्तों पर चलती है. आपके रिश्ते सबके साथ अच्छे हों तो आप लम्बी पारी खेल सकते हैं. चौदह साल पहले आप इस इंडस्ट्री में किसी को नहीं जानते थे. आप इतनी लम्बी पारी कैसे खेल रहे हैं?
इस इंडस्ट्री में रिश्ते आपके काम से बनते हैं. जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे. अपने काम से ईमानदारी रखिये, सब आपकी इज़्ज़त करेंगे.

क्या असीम सफलताओं और स्पॉटलाइट के बावजूद इस इंडस्ट्री में संभव है कि एक इंसान अकेला महसूस करे? आप ऐसे पलों में खुद को कैसे सँभालते हैं?
काम के दौरान आप भीड़ में रहते हैं लेकिन अंत में आप अकेले ही होते हैं. मुंबई में अकेला महसूस करना एक आम बात है. मैं खुशनसीब हूँ कि अपने माँ-बाप के साथ रहता हूँ. घर में इंटर होने के बाद उनकी डांट खाता हूँ और मैं इंडस्ट्री को भूल जाता हूँ. 


क्या निर्देशक बनना हमेशा से आपका सपना था? या कास्टिंग में शीर्ष पर पहुँचने के पश्चात आपने इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बनाया?
मैंने निर्देशक बनने का सपना नहीं देखा था. यह एक प्रोसेज रहा. फिल्मों के लिए कास्टिंग करते-करते मुझे यह इंट्रेस्ट डेवेलप हुआ. फिर मैंने इसकी तैयारी की.

दिल बेचारा फिल्म ने आपको चुना या आपने इसे अपनी पहली फिल्म के लिए चुना? इसकी योजना कैसे बनी? 
दिल बेचारा ने मुझे चुना. इस फिल्म को पहले भी कई लोग बनाने वाले थे लेकिन सफल नहीं हुए. फॉक्स स्टार स्टुडिओज़ की ऋचा पाठक ने मुझे यह स्क्रिप्ट भेजी. इसे पढ़ने के बाद मैंने इससे एक लगाव महसूस किया। फिर मैंने इसे बनाने के लिए हाँ कहा.

सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म से कैसे जुड़े?
सुशांत ने 2017 में मुझसे वादा किया था कि आप जब भी अपनी पहली फिल्म बनाओगे तो मैं ही उसमें काम करूँगा. शायद काय पो छे का प्यार था मेरे लिए. जब मैंने उसे दी फाल्ट इन आवर स्टार्स के बारे में बताया तो वह तुरंत करने के लिए तैयार हो गया. बिना स्क्रिप्ट पढ़े.

इस पर हॉलीवुड में एक बेहद सफल फिल्म दी फाल्ट इन आवर स्टार्स बन चुकी है. उस फिल्म का कितना दबाव महसूस करते हैं?
मैंने दी फाल्ट इन आवर स्टार्स पहले नहीं देखी थी. यह फिल्म जिस किताब पर बेस्ड है, वह किताब भी मैंने बाद में पढ़ी. मैं हॉलीवुड की फिल्में बहुत कम देखता हूँ. मैं कोई दबाव महसूस नहीं रहा. मैंने बाद में वह फिल्म फ़ास्ट-फारवर्ड करके देखी. 

आपकी योजना अंसल एलगोर्ट और सुशांत को एक मंच पर लाने की थी. इसे लेकर आप दोनों बहुत एक्साइटेड थे. इस ख्वाहिश के पूरा न होने का दुःख हमेशा रहेगा आपको... 
यार वह मेरा सपना था लेकिन कहते हैं न कि हर सपना पूरा नहीं होता. मैं दिल बेचारा के ट्रेलर लांच पर अंसल और सुशांत को एक मंच पर लाना चाहता था. यह मेरा सुशांत से वादा था. मैं बहुत खुश हुआ था जब डेढ़ साल पहले सुशांत और अंसल ने फिल्म के बारे में ट्वीट भी किया था.

सुशांत सिंह राजपूत से आपको पहली मुलाकात याद है? कब और कैसे मिलना हुआ था?
शोभा संत ने मुझे सुशांत के बारे में पहली बार बताया और फिर बाद में उससे मिलवाया था. मैं टीवी ज़्यादा नहीं देखता. और काय पो छे के ऑडिशन के सिलसिले में हमारी पहली भेंट हुई थी. मैं वर्सोवा में उससे एक कैफे में मिला था. फिर हम दोस्त और फिर भाई बन गए. 


सुशांत सिंह राजपूत की किन खूबियों से आपको यह विश्वास मिला कि वह फिल्मों में लम्बा सफर तय करेंगे? 
एक हीरो बनने के लिए जो चार्म, डेडिकेशन, परफॉर्मेंस, ईमानदारी, सिंसियरिटी... वो सबकुछ उसमें था... उसका चार्म ही था जो इतने कम समय में इतना अच्छा काम वह कर गया. अभी होता तो वो और करता. 

सुशांत सिंह राजपूत से अपनी आखिरी बातचीत और मुलाकात के बारे में अगर बताना चाहें तो...  
मेरा बर्थडे था 27 मई को. उस दिन लम्बी बातचीत हुई थी हमारी. वो बहुत खुश था. उसके बाद दिल बेचारा को लेकर अक्सर हमारी बातचीत होती रहती थी. 

क्या सुशांत दिल बेचारा फिल्म देख चुके थे? या दिल में अफ़सोस है कि वह अपनी आखिरी फिल्म नहीं देख पाए? 
डबिंग के दौरान उसने पूरी फिल्म देखी थी. दुःख इस बात का है कि वह फ़ाइनल फिल्म नहीं देख पाया. मेरी पहली फिल्म है लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि खुश होऊं या दुखी. अपनी फिलिंग समझ में नहीं आ रही है.
Pensive face
Pensive face

सुशांत का फेवरेट सांग कौन सा फिल्म का? 
तारे गिन और दिल बेचारा टाइटल ट्रैक। सिंगल शॉट के लिए बहुत एक्साइटेड था. उसने बहुत मेहनत की थी. फ़ाइनल सांग  देख कर बहुत ख़ुश हुआ था. 

आज अपने दोस्त-भाई सुशांत सिंह राजपूत को कोई एक गीत डेडिकेट करना हो तो वो कौन-सा गीत करेंगे? 
मेरी जीत, तेरी जीत, तेरी हार, मेरी हार, सुन ले मेरे यार... ये दोस्ती... 

अपनी किन फिल्मों की कास्टिंग पर आपको बहुत गर्व है? 
बहुत हैं लेकिन फिलहाल जो मुझे याद आ रही हैं, वो हैं- काय पो छे, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, सुपर 30, चिल्लर पार्टी, बजरंगी भाईजान, दंगल, शाहिद। अभी मैं 83, ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा को लेकर बहुत एक्साइटेड हूँ. 

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