Friday, November 23, 2012

मैं शाहरुख की बात नहीं कर रहा हूं... अर्जुन रामपाल


                                                   अपने परिवार के साथ अर्जुन रामपाल
अर्जुन रामपाल ने अब उस सिनेमा की राह पकड़ ली है, जहां वास्तविकता है, अर्थ है और मनोरंजन भी. उनकी पसंद अब प्रकाश झा और सुधीर मिश्रा जैसे फिल्मकार हैं. प्रकाश झा के साथ तो उनकी तीसरी फिल्म सत्याग्रह शूटिंग फ्लोर पर जा रही है.
हाल के दिनों में अर्जुन ने अपने आप को एक नए रूप में पेश किया है, जिसे स्क्रीन पर साफ देखा जा सकता है. उनका अभिनय भी परिपक्व हो गया है. अब वह एक सफल बिजनेसमैन भी हैं. उनका नाइट क्लब लैप दिल्ली का एक हॉट स्पॉट बन चुका है. उनकी इच्छा इसका विस्तार करने की है. तो अब आप उनसे एक हॉट मॉडल और सफल एक्टर बनने के साथ ही, सक्सेजफुल बिजनेसमैन बनने का मंत्र भी जान सकते हैं.
सुबह सात बजे वह दिल्ली से एक बिजनेस संबंधी मीटिंग करके लौटे हैं, लेकिन आराम करने की बजाए वह मुंबई के महबूब स्टूडियो में अपनी फिल्म की प्रमोशनल एक्टिविटी में लग गए हैं. प्रस्तुत है अर्जुन रामपाल से बातचीत के मुख्य अंश

राजनीति के बाद चक्रव्यूह और इसके बाद सत्याग्रह, प्रकाश झा के साथ आपका एसोसिएशन बरकरार है. आप उन्हें नहीं छोड़ रहे हैं या वह आपको हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं?
(हंसते हैं) जब आप एक फिल्म बनाते हैं और आपका अनुभव अच्छा रहता है, तब एक केमिस्ट्री बन जाती है और फिर मजा आता है. आप कोई भी एक्टर को देख लो, उनका एक फेवरेट डायरेक्टर होता है, जिनके साथ वो काम करते रहते हैं, हॉलीवुड में भी और हमारे यहां भी. मेरे खयाल से प्रकाश और मैं उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां वो सोचते हैं कि ये किरदार अर्जुन को देना चाहिए और उन्होंने जो भी किरदार मुझे दिए हैं, चाहे वह राजनीति में हो या चक्रव्यूह में या अब सत्याग्रह हो, सारे किरदार एक-दूसरे से अलग हैं. वो मुझे डिफरेंट लाइट्स में देखते हैं. मुझे मजा आता है उनके साथ काम करके, क्योंकि उनकी रिचर्स कमाल की होती है, वो अपनी कला को बेहतरीन तरीके से समझते हैं. जब मैं इंडस्ट्री में आया था, तबसे वो मेरे साथ काम करना चाहते थे. राजनीति बनने के पांच साल पहले उन्होंने मुझे पृथ्वी का रोल ऑफर किया था. मगर तब उन्होंने वह फिल्म नहीं बनाई और पांच साल बाद मुझको ऐसे फोन किया, जैसे पांच दिन पहले ही मुझसे आकर मिले थे कि अच्छा वो फिल्म याद है, जो तुझे सुनाई थी, वो अब हम लोग बना रहे हैं. अभी मैंने सुधीर मिश्रा की फिल्म इनकार की है, वह उन्होंने ही मेरे पास भेजी थी और कहा था कि तुम सुधीर के साथ काम करो, तुम्हें मजा आएगा.

हाल के सालों में ऐसा लग रहा है कि अभिनय और सिनेमा के बारे में आपकी सोच बदल गई है. क्या यह प्रकाश झा के सानिध्य का असर है?
हर फिल्म से ऐसा होता है. ऐसी फिल्म बनाने का क्या मतलब है, जिससे आप कुछ सीखते नहीं. प्रकाश बहुत ही ईमानदार फिल्ममेकर हैं. वे सेंसेशनल फिल्में नहीं बनाते. वह टॉपिकल फिल्म बनाते हैं, जिसके बारे में आपको अच्छी जानकारी मिलती है. जैसे कि चक्रव्यूह के दौरान... मैं जानता हूं कि नक्सल मूवमेंट देश के अंदर चल रहा है. लेकिन क्योंकि हम बड़े शहर में रहते हैं, जहां आपने यह सब नहीं देखा है, तो आपकी जानकारी कितनी होती है? जितना आप अखबार या टीवी में देखते हैं. चक्रव्यूह की मेकिंग के दौरान जानने को मिला कि ये क्यों होता है? समस्या क्या है? अगर आपको जानकारी मिलती है कि समस्या यह है तो खुद-ब-खुद आपको उसका हल मिल जाएगा. वो रिचर्स प्रकाश लेकर आते हैं.

चक्रव्यूह से राजनीति के बीच में आपने हीरोइन और रासकल्स जैसी फिल्में कीं. आपके फिल्मों के चुनाव से समझ में नहीं आ रहा है कि आप किस दिशा में जाना चाहते हैं?
रासकल्स को आप मेरी फिल्म नहीं कह सकते. उसमें मेरा स्पेशल अपियरेंस था. डेविड (धवन) मेरे पास आए थे और वह संजू (संजय दत्त) के प्रोडक्शन की फिल्म थी, तो उन्होंने कहा कि हम चाहेंगे कि आप ये रोल करो. मैंने दोस्ती के लिए वह फिल्म नहीं की, मुझे किरदार अच्छा लगा. मैंने सोचा कि डेविड हंै, कॉमेडी अच्छी बनाते हैं, तो उस हिसाब से मैंने फिल्म की. मेरा छह-सात दिन का काम था. आप यह नहीं कह सकते कि मैं उस दिशा में जाना चाहता हूं इसलिए वो फिल्म की है. रा.वन फिल्म मैं करना चाहता था. उसमें पॉवरफुल रोल था. फिल्म करते वक्त मैं ये सोचता हूं कि दर्शक क्या देखने जाएंगे? दर्शक पूरी फिल्म घर लेकर नहीं जाती, वह कोई एक चीज लेकर जाती है. मैं ऐसी फिल्में ढूंढ़ता हूं, जिसमें कुछ अलग करने को मिले. क्योंकि मैं सेम चीज कर-करके बोर हो जाता हूं. मैं दर्शकों को सरप्राइज करना चाहता हूं. रा.वन के जरिए बच्चों की मेरी फैन फॉलोइंग बढ़ गई है. रा.वन से मुझे फायदा हुआ. जब मैंने रॉक ऑन की थी, तो जो बोलते थे. जब ओम शांति ओम की थी, तब मुकेश मेहरा बोलते थे. अगर आपको किरदार के नाम से लोग आपको पहचानते हैं, तो आपको लगता है कि आपने ठीक काम किया है. अभी मैं ऐसी फिल्में कर रहा हूं, जो रीयल हैं, एंटरटेनिंग हैं और कमर्शियल भी हैं. ये कॉम्बिनेशन मुझे अच्छा लगता है. 

इस वक्त आप कैरेक्टर की बात कर रहे हैं, लेकिन पहले आप सिर्फ हीरो की फिल्में करते थे. आपकी ये सोच कब बदली?
सोच नहीं बदली. जमाना बदल गया है, ऑडियंस बदल गई है. आप फिल्में देखें जो आज चल रही हैं, वैसी फिल्में तो नहीं हैं कि उसमें एक ही हीरो था, उसका एक ही हेयर स्टाइल होता था, एक ही तरह से चलता था, वही बैकग्राउंड म्यूजिक होता था. और आप फर्क नहीं कर सकते कि ये कौन-सी फिल्म है. मुझे तो बहुत अफसोस होगा अगर मैं किसी फिल्म के सेट पर जाऊं और पुछूं कि यार, ये कौन सी फिल्म है? मेरे किरदार का नाम क्या है? इतनी समानता नहीं होनी चाहिए कि मैं कंफ्यूज हो जाऊं. क्योंकि आपने अपनी एक इमेज बना ली है और आप उस इमेज से बाहर नहीं निकल सकते, तो फिर आपकी कला क्या है? कुछ नहीं. ऐसी फिल्में आज की तारीख में चलती नहीं हैं. आप राउड़ी राठौड़ या दबंग ले लो, तो उसमें उन्होंने कैरेक्टर्स प्ले किए हैं, उनके कैरेक्टर्स स्ट्रॉन्ग हैं. बहुत कम एक्टर ऐसे हैं, जो अपने स्टार पॉवर से सब कुछ कर लेते हैं और सब माफ है. वो सब भी मेरे खयाल से ठीक हैं, क्योंकि उनमें ये खूबी है. मेरी खूबी ये है कि मैं अपने दर्शकों को सरप्राइज करता रहूं और उस रास्ते पर चलूं, जिसमें मुझे मजा आता है, ग्रोथ नजर आती है. वो मेरा गोल है. फिल्म में मैसेज है तो ठीक है, वरना फिल्म एंटरटेनिंग होनी चाहिए. भाषणबाजी नहीं होनी चाहिए.
आप अपने बच्चों महिका और माएरा को चक्रव्यूह के शूटिंग स्थल पंचमढ़ी में लेकर गए थे, ताकि वे असली हिंदुस्तान देख सकें.
वो आखिरी दो-तीन दिन की शूटिंग के दौरान सेट पर आए थे. मैं चाहता था कि वो आएं, क्योकि पंचमढ़ी बहुत खूबसूरत जगह है. मेरे बच्चे भारत के अंदर इतना अधिक नहीं गए हैं. मैं एक छोटे से गांव से आया हूं. हम लोग जंगल में खेलते थे. पूरा बचपन हमने ऐसे निकाला है. आजकल के बच्चों को आप मुंबई से बाहर किसी जगह पर ले जाओ, लोनावाला या खंडाला, तो कोई कीड़ा भी निकल आए, तो वो डर जाते हैं. मैं चाहता था कि ये खौफ उनके दिल से निकले. वे आए और जब बंदर उनके पास आए, तो उन्होंने उनको केला खिलाया. ऐसी बहुत सी चीजें की. उन्हें भी पता चला कि ये हमारा देश है. बहुत जरूरी है कि  वो ये सब देखें.

आपकी ऐसी योजना है कि परिवार के साथ देश के अंदर घूमने निकला जाए?
इंडिया में देखने और दिखाने लायक इतनी चीजें हैं, तो मैं उन्हें लेकर जाऊंगा. जरूरी है कि पहले हम अपने देश को जानें और फिर बाहर के देशों को देखें. किसी के लिए भी ट्रैवलिंग इज द बेस्ट एजुकेशन. आपका माइंड खुल जाता है, असलियत सामने आ जाती है.
जब आप फिल्मों में आए थे, तब आपका जो सर्कल था और अब जो सर्कल है, उसमें कितना बदलाव आया है?
फ्रेंड्स को आप बदलते नहीं हैं, जैसे कि आप कपड़े बदलते हैं. हमारी इंडस्ट्री में ऐसा नहीं है, जैसाकि लोग सोचते हैं. मेरे अच्छे दोस्त हैं. जिनके साथ भी मैंने काम किया है, जिनके साथ अच्छा रिलेशनशिप रहा है. मैं क्यों किसी का नाम लूं? किसको जानना है कि मेरे दोस्त कौन हैं? मेरा उठना-बैठना किसके साथ है? वो मेरा निजी मामला है.

एक वक्त था, जब आप फिल्म इंडस्ट्री के गलियारों में पले-बढ़े लोगों के साथ फिल्में करते थे, लेकिन अब आप फिल्म इंडस्ट्री के बाहर से आए लोगों के साथ फिल्में कर रहे हैं. क्या यह सोची-समझी रणनीति है या संयोग वश ऐसा हो रहा है?
मैं भी तो बाहर से ही आया हूं यार (हंसते हैं). मैं कौन सा इंडस्ट्री का हूं. शायद इंडस्ट्री के बाहर से जो लोग आए हैं, हम एक-दूसरे को बेहतर समझते हैं, क्योंकि हमारी कहानियां मिलती-जुलती हैं. जो आदमी सेकेंड या थर्ड जेनरेशन से आया है, वो उसकी किस्मत है. मैंने कभी ऐसे सोचा नहीं है. मैं सबके साथ काम करता रहा हूं और सबके साथ काम करना चाहता हूं. आपकी बात भी सही है. कोई बाहर का या कोई अंदर का नहीं होता. एक बार आप इंडस्ट्री में आ जाते हो, तो एक परिवार का हिस्सा बन जाते हो. यह एक छोटी-सी इंडस्ट्री है और हम सबको एकट्ठा रहना है. हम सबके रास्ते कहीं न कहीं जुड़े हैं, हम चाहें या न भी चाहें, तो बेहतर है कि आराम से सबके साथ काम करो. जो भी मेरा को-स्टार होता है, फिल्म बनाते वक्त मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त बन जाता हूं और फिर हमारे रास्ते अलग हो जाते हैं. लेकिन वो अनुभव हमारे साथ रहता है. प्रकाश मेरे साथ तीन फिल्में कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारा रोज का उठना-बैठना होता है. मेरी दूसरी जिंदगी भी है. मैं दूसरे बहुत से काम करता हूं. मेरे दूसरे को-स्टार्स हैं, उनके साथ बैठता हूं. लेकिन जब हम मिलते है, तो हमने जो वक्त साथ गुजारा था, वहीं से बात शुरू होती है. 

अगर इंडस्ट्री एक परिवार है, तो अभी हीरोइन में दिखाया गया है कि प्रोटैगोनिस्ट को कैसे सब लोग मिलकर बाहर कर देते हैं. इन चीजों में कितनी सच्चाई होती है?
ऐसी चीजें कभी-कभी हो जाती हैं. लेकिन ये आप पर भी निर्भर करता है. हीरोइन में दिखाया गया है कि वो लडक़ी बहुत डिफिकल्ट है. ये ऐसी इंडस्ट्री है, जहां आप बिजनेस करने आए हैं, ये आपको समझना चाहिए. अगर आप प्रोफेशनल हो, समय पर आते, काम करते हो, चले जाते हो, तो अच्छा है. क्योंकि आपको तो पेमेंट मिल रही है न आपके काम की, उस हिसाब से आप काम करो. अगर आप पेमेंट भी लेते हो, निजी मामला सेट पर लाते हो, तो इंडस्ट्री छोटी है, बात फैलती है और जब बात फैलती है, तो आपकी प्रतिष्ठा खराब होती है. कलाकार के पास क्या है? उसकी प्रतिष्ठा या उनका काम. आपके कह सकते हो कि आप वल्र्ड के बेस्ट एक्टर हो, लेकिन जब आपकी फिल्म आती है, तो सबको पता चलता है कि आप क्या हो? आप असलियत से दूर मत हटो. यही मेरा एक्सपरियंस मुझे समझाता है. यू स्टे रीयल इन दिस अनरियल वल्र्ड.

हाल में आपने एक करीबी मित्र और मार्गदर्शक अशोक मेहता (प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर) को खो दिया. उन्हें आप किस तरह से याद करना चाहेंगे?
अशोक जीनियस थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है. इंडस्ट्री को उन्होंने चेंज किया अपनी सिनेमैटोग्राफी से. जिस तरीके से फिल्में शूट हुआ करती थीं, उन्होंने उसे बदला. अलग तरीके की शूटिंग की. डिफरेंट टाइप की फिल्में कीं, आप बैंडिट क्वीन, 36 चौरंगी लेन, राम लखन, खलनायक देख लो. मोक्ष में इतनी खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी है. बहुत बड़ा लॉस है, सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए, इंडस्ट्री के लिए भी. मेरे खयाल से वो जल्दी चले गए.

एक्टिंग का पेशा अनिश्चितता से भरा है. क्या आपको लगता है कि एक्टर्स के पास प्लान बी होना चाहिए?
कौन असुरक्षित नहीं होता है? इनसिक्योरिटी आपको फोकस में भी रख सकती है या पूरी तरह से निगेटिव भी बना सकती है. इनसिक्योरिटी एक डर है. डर क्या है? आपमें कमी है कोई, आत्मविश्वास नहीं है. आप उस डर को खत्म करो. जैसे बचपन में आप अंधेरे में नहीं चल सकते हो, लेकिन बड़े होने पर आप अंधेरे में चलते हो, आप नहीं सोचते हो कि कोई भूत या चुड़ैल आ रही है. मेरा मानना है कि जो आप सोचते हैं, आपकी जिंदगी वही होती है. आप किसी का बुरा मत सोचो, पॉजिटिव सोचो, किसी के डाउनफॉल पर खुश न हो. जो मैं देखता हूं कि काफी होता है. तो आपकी जिंदगी खुद-ब-खुद आपकी इनसिक्योरिटी दूर होती जाती है और आपमें कॉन्फिेंडस आएगा और जब आपमें कॉन्फिडेंस आएगा, तो लोगों को आपमें कॉन्फिडेंस आएगा. लोग आपको देखेंगे कि ठीक है, इसे फॉलो करते हैं. प्लान ए क्या है, बी क्या है? कौन सा चलने वाला है, किसी को नहीं मालूम है. कोई भी काम करने से पहले मैं अपने आपसे तीन सवाल पूछता हूं. एक- क्या ये काम करने के बाद मुझे खुशी होगी? क्या गर्व होगा? दूसरा- फिल्म हो या बिजनेस हो, क्या मैं इसमें पैसे कमाऊंगा? जो मेरे लोग हैं, वो पैसे कमाएंगे? तीन- उसे करने से मेरी ग्रोथ क्या होगी?

एक सुपरमॉडल से एक अभिनेता और बिजनेसमैन की जर्नी तय करने का अनुभव कैसा रहा?
ऊपर मैंने जो तीन सवाल बताए, उन्हें अपने आप से पूछें. अगर जवाब सही मिलता है, तो आगे बढ़ें. अगर फिल्म आती है तो मैं सोचता हूं कि क्या मैं छह महीने इस यूनिट के साथ निकाल सकूंगा? हॉबीज हैं मेरी. क्लब खोला है मैंने क्योंकि मैं म्यूजिक का शौकीन हूं. इलेक्ट्रानिक म्यूजिक मुझे पसंद है. मैं सोच रहा था कि एक ऐसा क्लब खोला जाए जहां लड़कियों को सेफ की फिलिंग मिले. उस इंटेशन से क्लब खोला, चल गई. अगर हॉबी को आप प्रोफेशन बना सकते  हैं, तो अच्छा है.

शाहरुख के साथ आपके किस तरह के रिश्ते हैं? लोगों को ऐसा लगता है कि शाहरुख और आपके बीच मतभेद हो गए हैं.
अच्छे रिश्ते हैं. रिश्ते में आप इतना इनवॉल्व क्यों होना चाहते हैं? मैं आपसे जो भी कहूंगा, उससे मेरी प्रॉब्लम सॉल्व होने वाली है? नहीं. तो फिर मैं क्यों किसी को बोलूं? अगर किसी के साथ प्रॉब्लम्स हो भी, मैं शाहरुख की बात नहीं कर रहा हूं, तो आपको खुद जाकर उस प्रॉब्लम को सॉल्व करना चाहिए. मीडिया में उस बात को लाने का मतलब नहीं बनता. क्यों मीडिया में उसे डिस्कस करना?

आप एक फैमिली मैन दिखते हैं. क्या इसका श्रेय आपकी पत्नी मेहर को दिया जा सकता है?
हां, बिल्कुल. हमारी इंडस्ट्री में खास तौर से जो बीवी होती है, घर में जो लोग होते हैं, वह बहुत जरूरी होते हैं, वह आपके ग्राउंडिंग फैक्टर होते हैं.

सुपरमॉडल के बाद क्या वह सुपरवाइफ साबित हुई हैं?
आप सुपरवूमन भी कह सकते हैं!

आप इंडस्ट्री के एक सबसे गुडलुकिंग और हॉट स्टार हैं, लेकिन आपके बारे में कभी कोई र्यूमर नहीं सुनने को मिला. क्या आप समर्पित पति हैं इसलिए?
जब सब कुछ ठीक है घर पर, तो बाहर जाकर प्यार डूढने की जरूरत क्या है? मुझे समझ में नहीं आता है. मैं जहां हूं, खुश हूं. अफवाह तो अफवाह होती है. कभी कोई बढ़ा-चढ़ाकर लिख देता है, कभी उसमें सच्चाई होती है. मैं गॉसिप में इंडल्ज नहीं करता और उसे इनकरेज नहीं करता हूं.

क्या कभी आपने यह महसूस किया है कि लड़कियां आपके ऊपर खुद को न्यौछावर करती हैं?
वो होता है, लेकिन आप जानते हैं कि यह एक दौर है. ठीक है, मैं भी फिल्में देखता था. जब मैंने पहली बार अमित जी को देखा, तो एक फैन की तरह बिहेव किया. मैं खुद एक फैन रह चुका हूं, तो मैं जानता हूं कि फैन कैसे होते हैं? मेरे लिए जरूरी हैं वो. मैं अपने फैंस की इज्जत करता हूं. मैं रास्ते पर चलूं और कोई मुझे देखे ही नहीं, तो मैं बहुत नाराज हो जाऊंगा.
-रघुवेन्द्र सिंह 
 साभार-filmfare

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