कहते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नए लोगों को जल्दी अवसर नहीं मिलते, लेकिन इस साल इंडस्ट्री में आने वाले नए निर्देशकों के आंकड़े देखें, तो यह बात सच प्रतीत नहीं होती। हां, साल 2008 में इंडस्ट्री ने कुल पच्चीस नए निर्देशकों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। इनमें से कितने लोगों ने अपनी मौजूदगी से इंडस्ट्री को समृद्ध बनाया और वे आज सक्रिय हैं और कितने अपनी पहली फिल्म के बाद अदृश्य हो गए। आइए डालते हैं एक नजर..।
नई सोच के फिल्मकार
सिनेमा के क्षेत्र में नई सोच के लोगों का बांहें फैलाकर स्वागत होता है। राजकुमार गुप्ता, अब्बास टायरवाला और तरुण मनसुखानी ऐसे ही निर्देशक साबित हुए। राजकुमार ने आमिर, अब्बास ने जाने तू या जाने ना और तरुण ने दोस्ताना से हिंदी सिनेमा को नई दिशा और नया विषय दिया। राजकुमार और अब्बास की फिल्में कम बजट के बावजूद अपने दमदार विषय के कारण दर्शकों को लुभाने में कामयाब हुई। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन युवा निर्देशकों ने मजबूत कहानी और अजीज चरित्रों के दम पर अपना लोहा मनवाया। तरुण की दोस्ताना दोस्तों के त्याग और समर्पण की कहानी थी, लेकिन उन्होंने उसे आधुनिक रंग में पेश किया। दोस्ताना समलैंगिक विषय वाली फिल्म थी। यह विषय भारतीय दर्शकों के लिए बिल्कुल नया था। इन फिल्मकारों ने साबित किया कि कहानी ही असली हीरो होता है, बाकी सब बाद में आते हैं।
अभिनेता बने निर्देशक
इस साल दो अभिनेता अजय देवगन और जुगल हंसराज फिल्म निर्देशन में आए। उम्मीद की जा रही थी कि ये भी आमिर खान की तरह निर्देशन में धमाकेदार तरीके से प्रवेश करेंगे। चर्चा के मामले में अजय और जुगल को जरूर कामयाबी मिली, लेकिन वे अच्छी फिल्म देने में असफल रहे। अजय ने पत्नी काजोल और स्वयं को केंद्र में रखकर यू मी और हम बनाई और जुगल ने एनिमेशन फिल्म रोडसाइड रोमियो से निर्देशन में कदम रखा। अजय अपनी फिल्म में खुद के मोहपाश में बंधे दिखे। उनमें कहानी के मुताबिक चलने के सूझ की कमी दिखी, वहीं जुगल की फिल्म स्क्रिप्ट के मामले में कमजोर साबित हुई। हां, उनकी फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन एनिमेशन फिल्म जरूर बनी। इन अभिनेताओं ने स्क्रिप्ट पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। यही वजह है कि ये अच्छी फिल्म देने से चूक गए।
इनमें भी है दम
औसत बजट और सामान्य स्क्रिप्ट के बल पर भी इस साल कुछ निर्देशकों ने दर्शकों को अच्छी फिल्में दीं। इनमें भूतनाथ के निर्देशक विवेक शर्मा, जन्नत के निर्देशक कुणाल शिवदासानी, समर 2007 के निर्देशक सोहेल ततारी और एक विवाह ऐसा भी के निर्देशक कौशिक घटक का नाम शामिल है। विवेक की फिल्म भूतनाथ और कौशिक की एक विवाह ऐसा भी भारतीय संस्कारों और परंपराओं पर आधारित रही, वहीं सोहेल की फिल्म समर 2007 ने गण के बोझ से दबे किसानों के दर्द को बयां किया। कुणाल की जन्नत ने क्रिकेट में होने वाली सट्टेबाजी को रुचिकर तरीके से पेश किया। हाल में प्रदर्शित हुई फिल्म दसविदानिया के निर्देशक शशांत शाह के काम की भी सराहना हुई। इन निर्देशकों से आने वाले दिनों में अच्छे सिनेमा की उम्मीद है।
जिन्होंने दर्शकों को समझा नादान
आज के दर्शक अच्छे सिनेमा को तुरंत भांप लेते हैं। ऐसे में जिन निर्देशकों ने दर्शकों को मूर्ख समझने की भूल की, उन्हें दर्शक भी भूल गए। यह साल कुछ ऐसे निर्देशकों के आगमन का भी साक्षी बना, जिनकी पहली फिल्म दर्शक कभी देखना पसंद नहीं करेंगे। इनमें रामा रामा क्या है ड्रामा के चंद्रकांत सिंह, तुलसी के अजय कुमार, 26 जुलाई ऐट बरिस्ता के मोहन शर्मा आदि के नाम शामिल हैं। इन फिल्मों और इनके निर्देशकों के बारे में कम ही लोगों को याद होगा। अच्छा होता कि इन लोगों ने स्क्रिप्ट पर मेहनत, सही कलाकारों का चयन और सही निर्देशन किया होता। ये निर्देशक इन दिनों क्या कर रहे हैं, इस बारे में किसी को खबर नहीं है।
अभी बाकी है परीक्षा
पिछले दिनों दो नए निर्देशक अपनी पहली फिल्म लेकर दर्शकों के बीच उपस्थित हुए। इनमें सौरभ श्रीवास्तव की फिल्म ओ माई गॉड और अनिल सीनियर की दिल कबड्डी है, जबकि महिला निर्देशक मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए 19 दिसंबर को आएगी। साल के अंतिम सप्ताह में ए.आर. मुर्गदोस निर्देशित और आमिर खान अभिनीत फिल्म गजनी हिंदी फिल्मों के दर्शकों से रूबरू होगी। इस फिल्म का इंतजार लोग बेसब्री से कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि साल के अंतिम माह में प्रदर्शित होने वाली ये फिल्में इनके निर्देशकों के लिए खुशी की सौगात लेकर आएंगी।
्रफिल्मों के नाम-निर्देशक
1. तुलसी- अजय कुमार
2. रामा रामा क्या है ड्रामा- चंद्रकांत सिंह
3. कभी सोचा भी न था- कलोल सेन
4. 26 जुलाई ऐट बरिस्ता- मोहन शर्मा
5. यू मी और हम- अजय देवगन
6. क्रेजी 4- जयदीप सेन
7. भूतनाथ- विवेक शर्मा
8. जन्नत- कुणाल देशमुख
9. समर 2007- सोहेल ततारी
10. आमिर- राजकुमार गुप्ता
11. जाने तू या जाने ना- अब्बास टायरवाला
12. ए वेडनेसडे- नीरज पांडे
13. सी कंपनी- सचिन यार्दी
14. हाइजैक- कुणाल शिवदासानी
15. रूबरू- अरुण बाली
16. हल्ला- जयदीप वर्मा
17. हरी पुत्तर लकी- राजेश बजाज
18. रोडसाइड रोमियो- जुगल हंसराज
19. एक विवाह ऐसा भी- कौशिक घटक
20. दोस्ताना- तरुण मनसुखानी
21. दसविदानिया- शशांत शाह
22. ओह माई गॉड- सौरभ श्रीवास्तव
23. दिल कबड्डी- अनिल सीनियर
24. मेरे ख्वाबों में जो आए- मधुरिता आनंद
25. गजनी- ए. आर. मुर्गदोस
-रघुवेंद्र सिंह
नई सोच के फिल्मकार
सिनेमा के क्षेत्र में नई सोच के लोगों का बांहें फैलाकर स्वागत होता है। राजकुमार गुप्ता, अब्बास टायरवाला और तरुण मनसुखानी ऐसे ही निर्देशक साबित हुए। राजकुमार ने आमिर, अब्बास ने जाने तू या जाने ना और तरुण ने दोस्ताना से हिंदी सिनेमा को नई दिशा और नया विषय दिया। राजकुमार और अब्बास की फिल्में कम बजट के बावजूद अपने दमदार विषय के कारण दर्शकों को लुभाने में कामयाब हुई। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन युवा निर्देशकों ने मजबूत कहानी और अजीज चरित्रों के दम पर अपना लोहा मनवाया। तरुण की दोस्ताना दोस्तों के त्याग और समर्पण की कहानी थी, लेकिन उन्होंने उसे आधुनिक रंग में पेश किया। दोस्ताना समलैंगिक विषय वाली फिल्म थी। यह विषय भारतीय दर्शकों के लिए बिल्कुल नया था। इन फिल्मकारों ने साबित किया कि कहानी ही असली हीरो होता है, बाकी सब बाद में आते हैं।
अभिनेता बने निर्देशक
इस साल दो अभिनेता अजय देवगन और जुगल हंसराज फिल्म निर्देशन में आए। उम्मीद की जा रही थी कि ये भी आमिर खान की तरह निर्देशन में धमाकेदार तरीके से प्रवेश करेंगे। चर्चा के मामले में अजय और जुगल को जरूर कामयाबी मिली, लेकिन वे अच्छी फिल्म देने में असफल रहे। अजय ने पत्नी काजोल और स्वयं को केंद्र में रखकर यू मी और हम बनाई और जुगल ने एनिमेशन फिल्म रोडसाइड रोमियो से निर्देशन में कदम रखा। अजय अपनी फिल्म में खुद के मोहपाश में बंधे दिखे। उनमें कहानी के मुताबिक चलने के सूझ की कमी दिखी, वहीं जुगल की फिल्म स्क्रिप्ट के मामले में कमजोर साबित हुई। हां, उनकी फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन एनिमेशन फिल्म जरूर बनी। इन अभिनेताओं ने स्क्रिप्ट पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। यही वजह है कि ये अच्छी फिल्म देने से चूक गए।
इनमें भी है दम
औसत बजट और सामान्य स्क्रिप्ट के बल पर भी इस साल कुछ निर्देशकों ने दर्शकों को अच्छी फिल्में दीं। इनमें भूतनाथ के निर्देशक विवेक शर्मा, जन्नत के निर्देशक कुणाल शिवदासानी, समर 2007 के निर्देशक सोहेल ततारी और एक विवाह ऐसा भी के निर्देशक कौशिक घटक का नाम शामिल है। विवेक की फिल्म भूतनाथ और कौशिक की एक विवाह ऐसा भी भारतीय संस्कारों और परंपराओं पर आधारित रही, वहीं सोहेल की फिल्म समर 2007 ने गण के बोझ से दबे किसानों के दर्द को बयां किया। कुणाल की जन्नत ने क्रिकेट में होने वाली सट्टेबाजी को रुचिकर तरीके से पेश किया। हाल में प्रदर्शित हुई फिल्म दसविदानिया के निर्देशक शशांत शाह के काम की भी सराहना हुई। इन निर्देशकों से आने वाले दिनों में अच्छे सिनेमा की उम्मीद है।
जिन्होंने दर्शकों को समझा नादान
आज के दर्शक अच्छे सिनेमा को तुरंत भांप लेते हैं। ऐसे में जिन निर्देशकों ने दर्शकों को मूर्ख समझने की भूल की, उन्हें दर्शक भी भूल गए। यह साल कुछ ऐसे निर्देशकों के आगमन का भी साक्षी बना, जिनकी पहली फिल्म दर्शक कभी देखना पसंद नहीं करेंगे। इनमें रामा रामा क्या है ड्रामा के चंद्रकांत सिंह, तुलसी के अजय कुमार, 26 जुलाई ऐट बरिस्ता के मोहन शर्मा आदि के नाम शामिल हैं। इन फिल्मों और इनके निर्देशकों के बारे में कम ही लोगों को याद होगा। अच्छा होता कि इन लोगों ने स्क्रिप्ट पर मेहनत, सही कलाकारों का चयन और सही निर्देशन किया होता। ये निर्देशक इन दिनों क्या कर रहे हैं, इस बारे में किसी को खबर नहीं है।
अभी बाकी है परीक्षा
पिछले दिनों दो नए निर्देशक अपनी पहली फिल्म लेकर दर्शकों के बीच उपस्थित हुए। इनमें सौरभ श्रीवास्तव की फिल्म ओ माई गॉड और अनिल सीनियर की दिल कबड्डी है, जबकि महिला निर्देशक मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए 19 दिसंबर को आएगी। साल के अंतिम सप्ताह में ए.आर. मुर्गदोस निर्देशित और आमिर खान अभिनीत फिल्म गजनी हिंदी फिल्मों के दर्शकों से रूबरू होगी। इस फिल्म का इंतजार लोग बेसब्री से कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि साल के अंतिम माह में प्रदर्शित होने वाली ये फिल्में इनके निर्देशकों के लिए खुशी की सौगात लेकर आएंगी।
्रफिल्मों के नाम-निर्देशक
1. तुलसी- अजय कुमार
2. रामा रामा क्या है ड्रामा- चंद्रकांत सिंह
3. कभी सोचा भी न था- कलोल सेन
4. 26 जुलाई ऐट बरिस्ता- मोहन शर्मा
5. यू मी और हम- अजय देवगन
6. क्रेजी 4- जयदीप सेन
7. भूतनाथ- विवेक शर्मा
8. जन्नत- कुणाल देशमुख
9. समर 2007- सोहेल ततारी
10. आमिर- राजकुमार गुप्ता
11. जाने तू या जाने ना- अब्बास टायरवाला
12. ए वेडनेसडे- नीरज पांडे
13. सी कंपनी- सचिन यार्दी
14. हाइजैक- कुणाल शिवदासानी
15. रूबरू- अरुण बाली
16. हल्ला- जयदीप वर्मा
17. हरी पुत्तर लकी- राजेश बजाज
18. रोडसाइड रोमियो- जुगल हंसराज
19. एक विवाह ऐसा भी- कौशिक घटक
20. दोस्ताना- तरुण मनसुखानी
21. दसविदानिया- शशांत शाह
22. ओह माई गॉड- सौरभ श्रीवास्तव
23. दिल कबड्डी- अनिल सीनियर
24. मेरे ख्वाबों में जो आए- मधुरिता आनंद
25. गजनी- ए. आर. मुर्गदोस
-रघुवेंद्र सिंह
No comments:
Post a Comment