फरहान अख्तर सुप्रसिद्ध लेखक जावेद अख्तर और अभिनेत्री हनी ईरानी के बेटे हैं। फरहान का बचपन मुंबई में गुजरा है। वे फिल्म इंडस्ट्री के गलियारों में हंसते-खेलते बड़े हुए। आज उनकी पहचान दूरदर्शी निर्माता, सुलझे निर्देशक और दमदार अभिनेता की है। वे अपने बचपन की सुनहरी यादों को पाठकों के साथ शेयर कर रहे हैं-
[मासूमियत का मिलता था फायदा]
मैं मुंबई के बांद्रा इलाके में पला-बढ़ा हूं। मेरा पूरा बचपन वहीं गुजरा है। मैं छुटपन में जमकर शरारतें करता था, लेकिन जैसे ही पकड़ा जाता, शांत बच्चा बन जाता था। इतना मासूम चेहरा बना लेता था कि सामने वाला डांटने से पहले सोच में पड़ जाता था। दूसरे शब्दों में कहूं तो मासूम चेहरे की वजह से मैं अधिकतर डांट खाने से बच जाया करता था। मेरी बिल्डिंग के बाहर एक ग्राउंड था। सोसायटी के सभी बच्चे वहीं खेलने आते थे। उस मैदान में मैं खूब क्रिकेट खेलता था।
[अधिक करीब रहा मां के]
मैं बचपन में मन की हर बात अपनी मां से शेयर करता था। मैं पढ़ने में औसत स्टूडेंट था। इंग्लिश लिटरेचर, ज्योग्राफी और हिस्ट्री मेरे पसंदीदा सब्जेक्ट थे। मैं स्कूल जाने से बहुत हिचकता था। हमेशा स्कूल से दूर रहने का बहाना ढूंढा करता था। इसके लिए मां मुझे बहुत डांटती थी। वे हमेशा मुझे स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती थीं।
[अमिताभ बच्चन से प्रभावित था]
मुझे बचपन में अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से मिलने का बहुत शौक था। पिताजी फिल्म इंडस्ट्री में थे, इसलिए मुझे बड़ी आसानी से कलाकारों से मिलने का मौका मिल जाता था। मैं बचपन में अमिताभ बच्चन से सर्वाधिक प्रभावित था। उनसे मिलने के लिए मैं सदैव लालायित रहता था। ऋषि कपूर भी उस वक्त मेरे पसंदीदा अभिनेता थे। मैं जब कभी किसी लोकप्रिय कलाकार से मिलता तो उससे मिलने की दास्तान अपने दोस्तों को विस्तार से बताता था। वे सभी खुश भी होते थे और मन ही मन मुझसे जलते भी थे।
[बहुत मिस करता हूं बचपन के दिन]
मैं अपने बचपन के बिंदास दिनों को बेहद मिस करता हूं। उन दिनों किसी बात की फिक्र नहीं होती थी, केवल मस्ती करने की फिक्र रहती थी। उस वक्त मुझे स्कूल जाना सबसे दूभर काम लगता था। उन दिनों मैं यही सोचा करता था कि हमें स्कूल क्यों भेजा जाता है, लेकिन आज अहमियत समझ में आती है। अब वापस स्कूल लौटने का मन करता है। मुझे लगता है कि बचपन हर इंसान की जिंदगी का बेस्ट पार्ट होता है।
[जिज्ञासा को रखें हमेशा बरकरार]
मैं बच्चों से कहना चाहूंगा कि वे अपने बचपन को खूब एंज्वॉय करें। दिल लगाकर पढ़ाई करें और खेलकूद में भी खुद को सक्रिय रखें। बचपन की एक खासियत होती है, जिज्ञासा। बचपन में हर वक्त नई चीजें जानने की इच्छा रहती है, लेकिन इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता है, वह तमाम डिग्रियां एकत्रित कर लेता है और खुद को बुद्धिमान समझने की भूल कर बैठता है। जिज्ञासा को हमेशा जिंदा रखना चाहिए, तभी इंसान जिंदगी में नई चीजें सीख सकता है और तरक्की कर सकता है।
-रघुवेंद्र सिंह
[मासूमियत का मिलता था फायदा]
मैं मुंबई के बांद्रा इलाके में पला-बढ़ा हूं। मेरा पूरा बचपन वहीं गुजरा है। मैं छुटपन में जमकर शरारतें करता था, लेकिन जैसे ही पकड़ा जाता, शांत बच्चा बन जाता था। इतना मासूम चेहरा बना लेता था कि सामने वाला डांटने से पहले सोच में पड़ जाता था। दूसरे शब्दों में कहूं तो मासूम चेहरे की वजह से मैं अधिकतर डांट खाने से बच जाया करता था। मेरी बिल्डिंग के बाहर एक ग्राउंड था। सोसायटी के सभी बच्चे वहीं खेलने आते थे। उस मैदान में मैं खूब क्रिकेट खेलता था।
[अधिक करीब रहा मां के]
मैं बचपन में मन की हर बात अपनी मां से शेयर करता था। मैं पढ़ने में औसत स्टूडेंट था। इंग्लिश लिटरेचर, ज्योग्राफी और हिस्ट्री मेरे पसंदीदा सब्जेक्ट थे। मैं स्कूल जाने से बहुत हिचकता था। हमेशा स्कूल से दूर रहने का बहाना ढूंढा करता था। इसके लिए मां मुझे बहुत डांटती थी। वे हमेशा मुझे स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती थीं।
[अमिताभ बच्चन से प्रभावित था]
मुझे बचपन में अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से मिलने का बहुत शौक था। पिताजी फिल्म इंडस्ट्री में थे, इसलिए मुझे बड़ी आसानी से कलाकारों से मिलने का मौका मिल जाता था। मैं बचपन में अमिताभ बच्चन से सर्वाधिक प्रभावित था। उनसे मिलने के लिए मैं सदैव लालायित रहता था। ऋषि कपूर भी उस वक्त मेरे पसंदीदा अभिनेता थे। मैं जब कभी किसी लोकप्रिय कलाकार से मिलता तो उससे मिलने की दास्तान अपने दोस्तों को विस्तार से बताता था। वे सभी खुश भी होते थे और मन ही मन मुझसे जलते भी थे।
[बहुत मिस करता हूं बचपन के दिन]
मैं अपने बचपन के बिंदास दिनों को बेहद मिस करता हूं। उन दिनों किसी बात की फिक्र नहीं होती थी, केवल मस्ती करने की फिक्र रहती थी। उस वक्त मुझे स्कूल जाना सबसे दूभर काम लगता था। उन दिनों मैं यही सोचा करता था कि हमें स्कूल क्यों भेजा जाता है, लेकिन आज अहमियत समझ में आती है। अब वापस स्कूल लौटने का मन करता है। मुझे लगता है कि बचपन हर इंसान की जिंदगी का बेस्ट पार्ट होता है।
[जिज्ञासा को रखें हमेशा बरकरार]
मैं बच्चों से कहना चाहूंगा कि वे अपने बचपन को खूब एंज्वॉय करें। दिल लगाकर पढ़ाई करें और खेलकूद में भी खुद को सक्रिय रखें। बचपन की एक खासियत होती है, जिज्ञासा। बचपन में हर वक्त नई चीजें जानने की इच्छा रहती है, लेकिन इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता है, वह तमाम डिग्रियां एकत्रित कर लेता है और खुद को बुद्धिमान समझने की भूल कर बैठता है। जिज्ञासा को हमेशा जिंदा रखना चाहिए, तभी इंसान जिंदगी में नई चीजें सीख सकता है और तरक्की कर सकता है।
-रघुवेंद्र सिंह
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