Friday, December 19, 2008

काश! वो दिन फिर आ जाएं/आफताब शिवदासानी/बचपन

अभिनेता आफताब शिवदासानी का बचपन 'लाइट, कैमरा एंड एक्शन' सुनते हुए गुजरा है। मात्र चौदह माह की नन्ही उम्र से वे एक्टिंग में सक्रिय हो गए थे। उनकी नादान हरकतों की वजह से सेट पर अक्सर मुसीबत खड़ी हो जाया करती थी, लेकिन वे अपनी मासूम मुस्कुराहट से सबका दिल जीत लेते थे। बचपन की खंट्टी-मीठी यादों को पाठकों से बांट रहे हैं आफताब-
[सबका दुलारा था]
मैं छुटपन में सबका दुलारा था। सब लोग मुझे गोद में उठाकर प्यार करना चाहते थे। मैं शरारती भी बहुत था, लेकिन मुझे कभी मार नहीं पड़ी। दरअसल, मैं इतना मासूम लगता था कि हर कोई मुझ पर फिदा हो जाता था। मेरी मासूम मुस्कुराहट सबके गुस्से को ठंडा कर देती थी। मैं आज जितना स्मार्ट दिखता हूं, उससे कहीं अधिक मैं बचपन में आकर्षक था। यही वजह है कि मुझे नन्हीं उम्र में कैमरे के सामने आने का सुनहरा मौका मिला।
[तेज था पढ़ने में]
मैं पढ़ने में शुरू से तेज था। मैंने हर कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। इतिहास मेरा पसंदीदा विषय था। मेरी गिनती सेंट जेवियर्स हाईस्कूल के होनहार छात्रों में की जाती थी। मम्मी-पापा और टीचर मुझसे हमेशा खुश रहते थे। मैं अपने स्कूल का सबसे शरारती छात्र भी था। एक वाकया मैं आज तक नहीं भूला हूं। स्कूल में एक बूढ़े टीचर थे। मैं उनकी क्लास हमेशा बंक करता था, लेकिन उन्होंने कभी पैरेंट्स से मेरी शिकायत नहीं की। दरअसल, मैं उनकी कक्षा का सबसे तेज छात्र भी था।
[पसंदीदा खेल था क्रिकेट]
मैं पढ़ने के साथ-साथ खेलने में भी तेज था। मम्मी-पापा ने मुझे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। क्रिकेट मेरा पसंदीदा खेल था। जैसे ही फुरसत मिलती, मैं दोस्तों को एकत्रित करके क्रिकेट खेलने लगता था। मैं बैडमिंटन, स्नूकर और स्क्वैश भी खूब खेलता था। मुझे स्कूल में ऑलराउंडर कहकर बुलाया जाता था। क्रिकेट के प्रति मेरी दीवानगी आज भी कम नहीं हुई है।
[रुझान न था एक्टिंग में]
मैं बचपन में एक्टिंग के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था। सच कहूं तो एक्टिंग में मेरा दिल ही नहीं लगता था। मैंने एक्टिंग को कॅरियर के तौर पर अपनाने के बारे में भी सोचा नहीं था, लेकिन बचपन से कैमरा फेस करते-करते मुझे कैमरा से लगाव हो गया। बाद में मैंने महसूस किया कि एक्टिंग ही एकमात्र ऐसा काम है, जिसे मैं आसानी से कर सकता हूं। फिर मैंने तय किया कि मुझे एक्टिंग में ही अपना भविष्य संवारना है।
[मिस करता हूं बचपन]
मैं अपने बचपन को बहुत मिस करता हूं। उससे अधिक बचपन की मासूमियत और शरारतों को मिस करता हूं। आज मेरे लिए सब कुछ बदल चुका है। मैं सेलीब्रिटी हूं। मेरी जिंदगी खुली किताब है। मेरी कोई प्राइवेसी नहीं है। बचपन में इन बातों की फ्रिक नहीं होती थी। जो दिल कहता था, सब कर लेते थे। आज मेरे पास सब कुछ है, सिवाय बीते बचपन के!
[रघुवेंद्र सिंह]

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