Monday, June 10, 2013

मुंबई में टैलेंट की कद्र होती है-राजकुमार यादव

काय पो चे देखने के बाद राजकुमार यादव का नाम हर किसी की जुबान पर है. रघुवेन्द्र सिंह ने इस दिलचस्प युवा अभिनेता से की खास मुलाकात
राजकुमार यादव ने हिंदी सिनेमा में अपना स्थान बना लिया है. काय पो चे का उनका सधा, सटीक, गंभीर और प्रभावी अभिनय सिनेमा के अध्येता हमेशा रेखांकित करते रहेंगे. छाप तो उन्होंने अपनी पहली फिल्म लव सेक्स और धोखा (2010) से छोड़ दी थी. रागिनी एमएमएस, शैतान, गैंगस ऑफ वासेपुर, चिट्टगॉन्ग और तलाश से उन्होंने इसे और मजबूत बनाया. राजकुमार अपने साथ अभिनय का एक ऐसा क्राफ्ट लेकर आए हैं, जो पर्दे पर एक नया रंग भर रहा है. ''अभिनय न करना ही मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रहती है. एक्टिंग के अलावा मैं वह सब करता हूं, जिससे मेरा किरदार विश्वसनीय लगे. राजकुमार अपनी मासूम व निश्छल मुस्कान के साथ कहते हैं. मगर कोई भी यह कथन उस व्यक्ति से सुनकर बेशक हैरान होगा, जिसकी सिनेमाई परवरिश अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और आमिर खान का फिल्में देखकर हुई है. ''मैं इन सबका सम्मान करता हूं. इनकी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ हूं. इन्होंने मुझे फिल्मों में आने के लिए प्रेरित किया है. लेकिन हमारी फिल्मों में बहुत कैरिकेचर दिखाते हैं, ओवर द टॉप कर देते हैं. सजगता के साथ राजकुमार अपनी बात रखते हैं.
राजकुमार के जीवन और सोच में परिवर्तन का केंद्र बना एफटीआईआई (पुणे). नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, शबाना आजमी और जया बच्चन जैसे कलाकार देने वाले इस संस्थान में एक नए राज का जन्म हुआ. डेनियल डे लुइस और रॉबर्ट डी निरो जैसे हॉलीवुड अभिनेताओं से उनका परिचय हुआ. स्वयं राजकुमार कहते हैं, ''एफटीआईआई के दो-ढ़ाई सालों ने मेरे जीवन में बड़ा बदलाव लाया. वहां एक्टिंग की मेरी समझ का विस्तार हुआ. इससे पूर्व राज दिल्ली में थिएटर से जुड़े थे. ब्लू बेल्स से बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दो वर्ष तक श्रीराम सेंटर में अभिनय का प्रशिक्षण लिया. फिर एक वर्ष क्षितिज रैपेटरी के साथ काम किया. आपको जानकर हैरानी होगी कि किसी समय राजकुमार बड़े फिल्मी हुआ करते थे. सोलह साल की उम्र में वे अपने भाई के साथ भागकर मुंबई आ गए थे और कई घंटे तक शाहरुख खान के घर के सामने उनकी एक झलक पाने के लिए खड़े थे. गुलाम फिल्म देखने के बाद उन्होंने अपने दो दोस्तों के साथ रेल की पटरी पर ट्रेन के आगे दौड़ लगाई थी. ''वह बेवकूफी थी. मुझे वैसा नहीं करना चाहिए थे. क्या मिल गया वह करके? हमारी जान बच गई. राज पछतावे के लहजे में कहते हैं. 
                                                                    शाहिद
2008 में राजकुमार मुंबई आए. संघर्ष के दिनों में उन्होंने आय के लिए तीन-चार विज्ञापनों में गौण भूमिकाएं निभाईं. ''मकान का किराया तो देना ही था. एक्चुअली, मुंबई से आधे लोग इसलिए लौट जाते हैं, क्योंकि वो इस शहर की महंगाई को अफोर्ड नहीं कर पाते. ऐसा तो था नहीं कि मेरे पिताजी बहुत अमीर हैं और उन्होंने मुझे करोड़ो रुपए देकर भेजे थे. मैं मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार था और उसके बाद मिलने वाली सफलता का मजा उठाने के लिए भी तैयार था. आत्मविश्वास के साथ राजकुमार कहते हैं. दिबाकर बनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा से उनके लिए फिल्मों का दरवाजा खुला. मैंने अखबार में पढ़ा कि दिबाकर लव सेक्स और धोखा बना रहे हैं. मैंने कास्टिंग डायरेक्टर अतुल मोंगिया का किसी तरह नंबर निकाला और उन्हें परेशान कर-करके ऑडिशन देने पहुंच गया. मैंने ऑडिशन दिया. अगले दिन फोन आया कि दिबाकर को आपका ऑडिशन अच्छा लगा, मगर उन दिनों मैं जिम-विम करता था. उन्होंने कहा कि आपको नॉर्मल बनना पड़ेगा. उस दिन से मैंने भागना शुरु किया और आज तक भाग रहा हूं. हंसते हुए राज कहते हैं. राजकुमार काफी आगे निकल गए हैं. 2010 से 2013 तक उन्होंने सात फिल्में अपने नाम कर लीं. विकास बहल की कंगना राणावत के साथ क्वीन और फ्रिडा पिंटो के साथ एक अनाम फिल्में आने वाली हैं. हंसल मेहता निर्देशित शाहिद से उन्होंने पिछले वर्ष टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में काफी धूम मचाई. यह वकील शाहिद आजमी के जीवन पर आधारित फिल्म है, जिनकी 2010 में हत्या कर दी गई थी. उत्साहित राजकुमार कहते हैं. शाहिद मेरे दिल के करीब है. जब आप एक बायोपिक करते हैं, तो आप पर जिम्मेदारी होती है. शाहिद का परिवार आज भी है. वो चाहेंगे कि हम उसे अच्छे से पेश करें क्योंकि लोग फिल्म में जिस शाहिद को देखेंगे, वही छवि उनके मन में बैठ जाएगी. यह बहुत अच्छी फिल्म बनी है.
                                                            चिट्टगॉन्ग
 राजकुमार गुडग़ांव (हरियाणा) के एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से हैं. उनके पिता सत्यप्रकाश यादव हरियाणा सरकार में रेवेन्यू डिपार्टमेंट में कार्यरत थे. उनके बड़े भाई अमित और बड़ी बहन मोनिका हैं, जिनके साथ मिलकर उन्होंने बचपन में बहुत शैतानियां कीं. स्थानीय सिद्धेश्वर स्कूल से उन्होंने प्रारंभिक पढ़ाई की. स्कूल में राजकुमार डांस किया करते थे. बाद में उन्होंने डांस का प्रशिक्षण भी दिया. मार्शल आर्ट में वे कई बार नेशनल चैंपियन रह चुके हैं. हालांकि उनकी ये प्रतिभाएं हमें अब तक पर्दे पर दिखी नहीं है. आप धीरे-धीरे इन प्रतिभाओं को देखेंगे. वैसे, मेरी एक इच्छा है कि मैं अपनी फिल्म में गाना गाऊं. राज मुस्कुराते हुए कहते हैं.
अपनी तरह छोटे शहर और गैर फिल्मी पृष्ठभूमि से हिंदी सिनेमा में करियर बनाने के इच्छुक लडक़े-लड़कियों का राज उत्साहवद्र्धन करते हैं. वे उनकी राह आसान करने का प्रयास करते हैं, सबसे पहले आप अपने क्राफ्ट पर काम करें. हर किसी को लगता है कि मैं मोहल्ले में सबसे अच्छा दिखता हूं, तो मैं एक्टर हूं. वो अच्छी बात है, लेकिन उसके अलावा आपके पास क्या है? मुंबई में टैलेंट की कद्र होती है. अपने क्राफ्ट को निखार लीजिए, ताकि जब आप ऑडिशन देने जाएं तो कास्टिंग डायरेक्टर को लगे कि यार, इस बंदे में कुछ बात है.
राजकुमार स्टारडम की ऊंचाई छूना चाहते हैं, मगर निजी जीवन की सादगी और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना चाहते हैं. मैं चाहता हूं कि दुनिया जाने कि यह कमाल का एक्टर है. लेकिन मैं अपनी निजी लाइफ को नहीं खोना चाहता. मैं टपरी पर बैठकर अपने दोस्तों के साथ चाय पीने की आजादी नहीं खोना चाहता.

बॉक्स सामग्री
पहला प्यार- मधुबाला. मैं मुगल-ए-आजम देखता हूं, तो सोचता हूं कि इतना खूबसूरत कोई कैसे हो सकता है!
पहली सैलरी- मैं एक बच्ची को डांस ट्यूशन देने जाता था. तीन सौ रुपए मिले थे. उससे मैंने घर का सामान खरीदा था.
पहली तारीफ- मैं 11वीं में था. मैंने पहला नाटक किया था. एक लेडी ने मेरे पास आकर कहा था कि मेरा बेटा हो तो ऐसा ही हो.
पहला काम- 2008 में एचडीएफसी का एक एड किया था. मैं उसमें पीछे कहीं खड़ा था. मुझे पांच हजार रुपए मिले थे.

साभार: फिल्मफेयर 

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