Wednesday, December 30, 2009

आती है मम्मी की याद: प्रतीक बब्बर

बब्बर बचपन में भले ही मां स्मिता पाटिल की गरिमा और लोकप्रियता से परिचित न रहे हों, लेकिन अब वे भारतीय सिनेमा में अपनी मां के कद को अच्छी तरह समझ चुके हैं। प्रतीक जानते थे कि एक्टिंग को करियर बनाने के बाद उन पर अपनी मां की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की जिम्मेदारी आएगी। हुआ भी वही, पिछले साल उनकी पहली फिल्म जाने तू या जाने ना आई, तो लोग उनमें स्मिता पाटिल को ढूंढ रहे थे। प्रतीक को सफलता तब मिल गई, जब अमिताभ बच्चन ने फिल्म देखने के बाद कहा, प्रतीक ने मुझे स्मिता पाटिल की याद दिला दी। यहां इक्कीस वर्षीय प्रतीक बता रहे हैं अपनी मां, पिता राज बब्बर और खुद से जुड़ी अपनी बातें..
गलत थी सोच: बचपन में मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मम्मी की क्या पोजीशन है? मैं यही सोचता था कि अन्य अभिनेत्रियों की तरह वे भी एक अभिनेत्री रही होंगी, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मुझे उनकी पोजीशन का अहसास हुआ। मेरी बचपन की सोच गलत थी। मम्मी स्पेशल अभिनेत्री थीं। मैं जानता हूं कि मेरे साथ उनका नाम जुड़ा है, इसीलिए मुझसे लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं, लेकिन मैंने एक बात तय कर ली है कि मम्मी के नाम का सहारा लेकर आगे नहीं बढूंगा। मैं अपनी काबिलियत के बल पर आगे बढूंगा और मम्मी का नाम रोशन करूंगा।
शबाना जी हैं मम्मी: मेरे जन्म के समय मम्मी की डेथ हो गई थी। मुझे मम्मी की कमी खलती है। उनके बारे में जब लोगों से सुनता हूं या फिर उनकी फिल्में देखता हूं, तो ज्यादा याद आती हैं। उनकी फिल्म वारिस मैं बार-बार देखता हूं। आज मम्मी मेरे साथ नहीं हैं, लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि उनके जैसा कोई शख्स मेरी लाइफ में है। मैं शबाना आजमी को मम्मी की तरह मानता हूं। वे भी मुझे बेटे जैसा प्यार देती हैं। उनके साथ मेरा स्पेशल रिश्ता है। वे साथ होती हैं, तो मैं कॉन्फिडेंट फील करता हूं।
डरता हूं डैड से: मैं डैड से बहुत डरता हूं। वे सख्त फादर हैं। मैं गलती करता हूं, तो डांटते हैं। हालांकि डैड और मेरे बीच खुला रिश्ता है। हम दोनों एक-दूसरे पर यकीन करते हैं। पापा हमेशा कहते हैं कि जो काम करो, अच्छी तरह करो। उसमें कोई गुंजाइश मत छोड़ो। मम्मी-पापा को साथ स्क्रीन पर देखना मुझे अच्छा लगता है। उनकी फिल्म शपथ मुझे पसंद है।
अकेलापन भाता है: मैं अलग नेचर का हूं। मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है। मेरे ज्यादा दोस्त नहीं हैं। मुझे पढ़ने का शौक है। मुझे शांत जगह पर रहना पसंद है। मैं बचपन से ऐसा ही हूं। मेरे इस स्वभाव से कुछ लोगों को दिक्कत होती है, लेकिन इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं ऐसा ही हूं और मुझे ऐसे ही स्वीकार करें। मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि बड़ा होकर ऐक्टर बनूंगा। एक्टिंग मेरा पैशन है। मैं मम्मी की तरह अलग-अलग भूमिकाएं करना चाहता हूं। मैं परफॉर्मेस ओरिएंटेड फिल्में करना चाहता हूं।
पहली नौकरी: मैंने पढ़ाई खत्म करने के बाद ऐड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ के साथ हो लिया। वे मम्मी के दोस्त हैं। उन्होंने मुझे असिस्टेंट की नौकरी दी। वे बहुत काम करवाते थे, डांटते भी थे। मैंने उनके साथ चार-पांच विज्ञापन फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्होंने मुझे पैसे नहीं दिए। मैं जब उनसे पैसे की बात करता, तो वे कहते कि अभी काम करते हुए एक महीना नहीं हुआ और पैसे की बात कर रहे हो। तुम पैसे देने लायक नहीं हो।
-रघुवेन्द्र सिंह

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