Saturday, June 11, 2011

गुदड़ी में लाल होते हैं- धर्र्मेद्र


कलर्स के लोकप्रिय रियलिटी शो इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन ३ में पहली बार धर्मेन्द्र बतौर जज आ रहे हैं. टीवी से धर्र्मेद्र का खास लगाव है। उन्होंने तय किया है कि 'इंडियाज गॉट टैलेंट' के प्रतिभाशाली लड़के-लड़कियों को वह अपने होम प्रोडक्शन की फिल्मों में मौका देंगे। जुहू स्थित अपने बगले में धर्मेद्र ने विशेष बातचीत में हमसे बाटी अपने दिल की बात :

टीवी पर आने में आपने इतना वक्त क्यों लगाया?
हर चीज का वक्त होता है। छोटे स्क्रीन का आजकल खूब चर्चा है। जो चीजें हमें बिग स्क्रीन पर नहीं देखने को मिलती, वह छोटे स्क्रीन पर देखने को मिल जाती हैं। टीवी पर आना अच्छा है।
आपने टीवी देखना कबसे शुरू किया?
जब टीवी आया था तब ब्लैक एंड व्हाइट था। तब टीवी पर खास कर गाने आते थे। चित्रहार वगैरह। गाव के सब लोग आकर बैठ जाते थे। बड़ा अट्रैक्शन था। मैं सोचता था कि यार ये कलर कब होगा? एक्साइटमेंट थी मन में।
टीवी पर क्या देखना पसद करते हैं?
मैं रेग्युलर टीवी नहीं देखता। मैं दिलीप साब और राज कपूर की पुरानी पिक्चरें ढूंढ़ता हूं। पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। आज अच्छे प्रोग्राम आ रहे हैं। जैसे 'कौन बनेगा करोड़पति'। सलमान ने जो किया था वह भी अच्छा था। आज बहुत लोगों को मौके मिल रहे हैं। आपको टीवी से तालीम मिल सकती है।
क्या मानें कि फिल्म वाले फिल्म के प्रचार के लिए टीवी का इस्तेमाल करते हैं और टीवी वाले फिल्म स्टार का फायदा उठाते हैं अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए?
गिव एंड टेक है। हमारे समय में इंडस्ट्री को बहुत ढक कर रखते थे। स्टार कैसे रहते हैं? कैसे खाते हैं? उसका अलग ही चार्म था, लेकिन आज उसका उलट हो गया है। उसके लिए मैंने लिखा था कि 'चल रहे हो तो बताने की जरूरत नहीं, रूक गए जिस दिन पूछेगा कोई नहीं, जानते हैं जो ढोल को पीटते नहीं, चलते रहते हैं बस मुड़कर देखते नहीं'। अब हम 'मुनादी वाला' हो गए हैं। पहले मैं थोड़ा असहज था, लेकिन वक्त के साथ बदलना पड़ता है। अगर वक्त के साथ नहीं बदले तो पीछे छूट जाएंगे।
'इंडियाज गॉट टैलेंट' शो का अनुभव कैसा रहा?
आपको याद नहीं होगा कि मैं एक समय कंटेस्टेंट रह चुका हूं। अप्रैल 1958 की बात है। बिमल राय और गुरुदत्त ने एक काटेस्ट आयोजित किया था। वह फिल्मफेयर का था। मैंने फार्म भर के भेज दिया। हमारे जमाने में एक्टर बनना एक ख्वाब था। अगर मुझे काटेस्ट में नहीं बुलाया जाता, तो आज गाव में कुछ कर रहा होता। उस काटेस्ट की वजह से आज धर्मेद्र हीरो बना है।
क्या आज के लोगों को आपके जमाने की तुलना में ज्यादा मौके मिल रहे हैं?
अब तो मौके ही मौके हैं। कहा मौके नहीं हैं? हर चैनल पर मौके मिल रहे हैं। जिसमें टैलेंट है, उसे मौका मिल रहा है। आज के लोग बहुत लकी हैं। अगर उनमें टैलेंट है, तो वे किसी भी मुकाम पर पहुंच सकते हैं।
स्माल टाउन से ज्यादा जोश के साथ लड़के-लड़किया आ रहे हैं?
कहते हैं न कि गुदड़ी में लाल होते हैं। उनका अपना रंग और रूप होता है। गुदड़ी से तो हम निकल कर आए हैं।
अब तो आप मुंबई के है। क्या गाव वालों से अब भी लगाव रहता है?
हा, मैं गेट से बाहर निकलता हूं, लोगों को गले से लगा लेता हूं। मैं तो कहता हूं कि कोई मुस्कुरा देता है तो मैं हाथ बढ़ा देता हूं, कोई हाथ बढ़ा देता है तो मैं सीने से लगा लेता हूं, कोई सीने से लगा लेता है तो मैं दिल में बसा लेता हूं।
क्या कंटेस्टेंट को आप मौका देंगे?
जरूर मौका देंगे। हम नए टैलेंट की तलाश कर रहे हैं। हम प्रोडक्शन में हैं तो अपनी फिल्मों में चास देना पसद करेंगे। मैं चाहूंगा कि कंटेस्टेंट कामयाब हों।
-अजय ब्रह्मंात्मज /रघुवेन्द्र सिह

No comments: