अनुपम खेर ने छोटी उम्र में ही मन बना लिया था कि ऐक्टर बनना है। उनकी जन्मभूमि है शिमला। जब फिल्म स्टार शूटिंग के लिए वहां आते थे, तो वे कॉलेज की बजाए सेट पर पहुंच जाते थे। ऐक्टरों को करीब से देखने, ढूंढते और फिर दोस्तों के बीच जाकर गर्व से किस्से सुनाते। फिल्म इंडस्ट्री का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके अनुपम आज उन बातों को याद करते हैं, तो उनकी हंसी रुकती नहीं। 7 मार्च को जीवन के नए बसंत में प्रवेश कर रहे अनुपम अपने जन्मदिन के अवसर पर, याद कर रहे हैं उन दिनों को..
बचपन के दिन : मैंने बचपन में ऐक्टर बनने का सपना तो देख लिया था, लेकिन यह पता नहीं था कि ऐक्टर कैसे बनूंगा! मेरे उन कच्चे सपनों पर हिंदी फिल्मों का बहुत असर था। मैं अक्सर यही सोचता था कि जो बड़े पर्दे पर ऐक्टर जैसे दिखते हैं, वे रिअॅल लाइफ में भी वैसे ही होते होंगे, लेकिन मेरा वह भ्रम अठारह वर्ष की उम्र में टूट गया। सुनील दत्त, जीतेन्द्र, ओम शिवपुरी और असरानी शिमला में फिल्म उमर कैद की शूटिंग करने आए थे। मैं पहली बार शूटिंग देखने गया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐक्टर हमारी तरह ही हाथ से खाना खाते हैं, पत्ते खेलते हैं और सड़क पर पैदल चलते हैं! दिलचस्प बात यह है कि मैं कॉलेज में जाकर दोस्तों से कहता कि जीतेन्द्र ने मेरे हाथ से खाना खाया और सुनील दत्त मुझसे चाय पीकर आने के लिए कह रहे थे। मैं ऐसे ही मनगढ़ंत किस्से सुनाता। उसी दौरान मेरे सपनों को मजबूती मिली।
आसान नहीं रहा सफर : मैं 3 जून 1981 को मुंबई के वीटी स्टेशन पर उतरा। उस वक्त जेब में मात्र 37 रुपये थे। पता नहीं था कि जाना कहां है! कोई अपना न था। मैंने कई रातें सड़कों पर गुजारीं, खाली पेट सोया और लोगों से झूठ बोला। मैंने संघर्ष करीब से देखा है। जब हर जगह धक्के खाकर मैं थक गया, तो अपने दादाजी को चिट्ठी लिखी। लिखा कि यहां लोगों को बात करने की तमीज नहीं है! लोग धक्के मारकर ऑफिस से बाहर कर देते हैं। मेरी दो स्तर पर बेइज्जती होती है। एक इनसानी और दूसरी पढ़े-लिखे स्तर पर। दरअसल, मैं एनएसडी का गोल्ड मेडलिस्ट था, इसलिए मुझे ज्यादा बेइज्जती महसूस होती थी। दादाजी का जवाब आया, तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें पढ़ाने के लिए घर के बर्तन बेचे, घड़ी बेची, क्या इसीलिए कि तुम वापस आ जाओ! तुम दो साल मुंबई में संघर्ष कर चुके हो। अब परिपक्व हो गए हो। याद रखो, भीगा हुआ इनसान बारिश से नहीं डरता! दादा जी की चिट्ठी ने मेरी आंखें खोल दी और मैं जोश के साथ सपने की तरफ बढ़ चला।
सकारात्मक सोच काम आई : मैं हमेशा सकारात्मक सोच रखता हूं और असफलता से अच्छी बातें सीखने की कोशिश करता हूं। मैं यह सोचकर दुखी नहीं होता कि अमिताभ बच्चन या रॉबर्ट डिनीरियो क्यों नहीं बना? मैं यह सोचकर खुश होता हूं कि कुछ लोग अनुपम खेर भी बनना चाहते हैं। मैं सोचकर दुखी नहीं होता कि मेरे पास कई करोड़ रुपये नहीं हैं! मैं सोचकर खुश होता हूं कि 37 रुपये के हिसाब से मैं हमेशा करोड़पति रहूंगा। मुंबई में एक प्रतिशत लोग सफल होते हैं। मैं तो खुश हूं कि लोग आज भी मुझे प्यार देते हैं। मेरी फिल्मों को शिद्दत से देखते हैं। मैं अपनी कमियों पर पर्दा नहीं डालता, बल्कि उनके बारे में बात करता रहता हूं। दुनिया में लोग आपकी कमियों से लोगों को डराते हैं और यदि मैं कमियों के बारे में बात करूंगा, तो कैसे डराऊंगा! आज मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, मोबाइल है और एक स्कूल भी है। मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं।
जीवन का निचोड़ : मैंने जब से ऐक्टिंग स्कूल खोला है, खुद को अधिक जिम्मेदार महसूस करने लगा हूं। बीच में एक दौर ऐसा भी आया था, जब मैं पैसे के लिए काम करने लगा था, लेकिन अब ऐसा काम नहीं करना चाहता, जिसे देखकर मेरे स्कूल के बच्चे कहें कि ये हमारे प्रिंसिपल हैं! मैं प्रशिक्षक और निर्देशक के रूप में ऐसा काम करना चाहता हूं कि दुनिया सम्मान की नजर से देखे। मैं स्कूल के बच्चों को न केवल अपने जीवन से सीखने की सलाह देता हूं, बल्कि संयमित जीवन जीने के लिए भी कहता हूं। कहता हूं कि झूठ जरूर बोलो, लेकिन खुद से कभी झूठ मत बोलो। मैंने अपने सफर से यही सीखा है कि परिश्रम और ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है। मुश्किलों से टकराने की ताकत है, तो हर मंजिल आपके कदम चूमेगी।
बचपन के दिन : मैंने बचपन में ऐक्टर बनने का सपना तो देख लिया था, लेकिन यह पता नहीं था कि ऐक्टर कैसे बनूंगा! मेरे उन कच्चे सपनों पर हिंदी फिल्मों का बहुत असर था। मैं अक्सर यही सोचता था कि जो बड़े पर्दे पर ऐक्टर जैसे दिखते हैं, वे रिअॅल लाइफ में भी वैसे ही होते होंगे, लेकिन मेरा वह भ्रम अठारह वर्ष की उम्र में टूट गया। सुनील दत्त, जीतेन्द्र, ओम शिवपुरी और असरानी शिमला में फिल्म उमर कैद की शूटिंग करने आए थे। मैं पहली बार शूटिंग देखने गया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐक्टर हमारी तरह ही हाथ से खाना खाते हैं, पत्ते खेलते हैं और सड़क पर पैदल चलते हैं! दिलचस्प बात यह है कि मैं कॉलेज में जाकर दोस्तों से कहता कि जीतेन्द्र ने मेरे हाथ से खाना खाया और सुनील दत्त मुझसे चाय पीकर आने के लिए कह रहे थे। मैं ऐसे ही मनगढ़ंत किस्से सुनाता। उसी दौरान मेरे सपनों को मजबूती मिली।
आसान नहीं रहा सफर : मैं 3 जून 1981 को मुंबई के वीटी स्टेशन पर उतरा। उस वक्त जेब में मात्र 37 रुपये थे। पता नहीं था कि जाना कहां है! कोई अपना न था। मैंने कई रातें सड़कों पर गुजारीं, खाली पेट सोया और लोगों से झूठ बोला। मैंने संघर्ष करीब से देखा है। जब हर जगह धक्के खाकर मैं थक गया, तो अपने दादाजी को चिट्ठी लिखी। लिखा कि यहां लोगों को बात करने की तमीज नहीं है! लोग धक्के मारकर ऑफिस से बाहर कर देते हैं। मेरी दो स्तर पर बेइज्जती होती है। एक इनसानी और दूसरी पढ़े-लिखे स्तर पर। दरअसल, मैं एनएसडी का गोल्ड मेडलिस्ट था, इसलिए मुझे ज्यादा बेइज्जती महसूस होती थी। दादाजी का जवाब आया, तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें पढ़ाने के लिए घर के बर्तन बेचे, घड़ी बेची, क्या इसीलिए कि तुम वापस आ जाओ! तुम दो साल मुंबई में संघर्ष कर चुके हो। अब परिपक्व हो गए हो। याद रखो, भीगा हुआ इनसान बारिश से नहीं डरता! दादा जी की चिट्ठी ने मेरी आंखें खोल दी और मैं जोश के साथ सपने की तरफ बढ़ चला।
सकारात्मक सोच काम आई : मैं हमेशा सकारात्मक सोच रखता हूं और असफलता से अच्छी बातें सीखने की कोशिश करता हूं। मैं यह सोचकर दुखी नहीं होता कि अमिताभ बच्चन या रॉबर्ट डिनीरियो क्यों नहीं बना? मैं यह सोचकर खुश होता हूं कि कुछ लोग अनुपम खेर भी बनना चाहते हैं। मैं सोचकर दुखी नहीं होता कि मेरे पास कई करोड़ रुपये नहीं हैं! मैं सोचकर खुश होता हूं कि 37 रुपये के हिसाब से मैं हमेशा करोड़पति रहूंगा। मुंबई में एक प्रतिशत लोग सफल होते हैं। मैं तो खुश हूं कि लोग आज भी मुझे प्यार देते हैं। मेरी फिल्मों को शिद्दत से देखते हैं। मैं अपनी कमियों पर पर्दा नहीं डालता, बल्कि उनके बारे में बात करता रहता हूं। दुनिया में लोग आपकी कमियों से लोगों को डराते हैं और यदि मैं कमियों के बारे में बात करूंगा, तो कैसे डराऊंगा! आज मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, मोबाइल है और एक स्कूल भी है। मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं।
जीवन का निचोड़ : मैंने जब से ऐक्टिंग स्कूल खोला है, खुद को अधिक जिम्मेदार महसूस करने लगा हूं। बीच में एक दौर ऐसा भी आया था, जब मैं पैसे के लिए काम करने लगा था, लेकिन अब ऐसा काम नहीं करना चाहता, जिसे देखकर मेरे स्कूल के बच्चे कहें कि ये हमारे प्रिंसिपल हैं! मैं प्रशिक्षक और निर्देशक के रूप में ऐसा काम करना चाहता हूं कि दुनिया सम्मान की नजर से देखे। मैं स्कूल के बच्चों को न केवल अपने जीवन से सीखने की सलाह देता हूं, बल्कि संयमित जीवन जीने के लिए भी कहता हूं। कहता हूं कि झूठ जरूर बोलो, लेकिन खुद से कभी झूठ मत बोलो। मैंने अपने सफर से यही सीखा है कि परिश्रम और ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है। मुश्किलों से टकराने की ताकत है, तो हर मंजिल आपके कदम चूमेगी।
-रघुवेंद्र सिंह
2 comments:
अनुपम खेर जी को जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ...
अनुपम जी को जन्मदिन की शुभ्कामनाए, अच्छा लगा उनसे परिचित हो कर... बधाई स्वीकार करें...
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