Tuesday, August 25, 2009

फिल्मों का डॉक्टर बन गया हूं-डेविड धवन

अपनी फिल्म के पात्रों की तरह खुशमिजाज़ और जिंदादिल हैं डेविड धवन. वे करीबियों को अपनी मजेदार बातों और दर्शकों को अपनी हास्य फिल्मों से हंसाते हैं. डेविड धवन की नई फिल्म है डू नॉट डिस्टर्ब। इस फिल्म में गोविंदा के साथ रितेश देशमुख, सुष्मिता सेन और लारा दत्ता केंद्रीय भूमिकाओं में हैं। प्रस्तुत है, डेविड धवन से बातचीत-
सिर्फ कॉमेडी फिल्में ही क्यों बनाते है?

देखिए, मैं चलती गाड़ी का बोनट नहीं खोलता। लोग कहते हैं कि आप कॉमेडी फिल्मों से अलग क्यों नहीं कुछ बनाते? अरे, मैं क्यों बनाऊं? पब्लिक जिसकी प्रशंसा करती है, मैं वही पिक्चर बनाऊंगा न। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा ने पूरी जिंदगी एक ही तरह की फिल्में बनाईं। हर मेकर का एक स्टाइल होता है और वही उसकी पहचान होती है। मैं कॉमेडी फिल्में ही निर्देशित करूंगा।
डू नॉट डिस्टर्ब में किस तरह की कॉमेडी है?
कॉमेडी तो कॉमेडी होती है। कॉमेडी का प्रकार नहीं होता। जब हम कहानी लिखते हैं तो हमारा मकसद हंसाना होता है। हंसाने के लिए हम तरह-तरह की परिस्थिति बनाते हैं। मैं मनमोहन देसाई को फॉलो करता हूं। वे मेरे गुरू हैं। मेरी फिल्मों में जो फील है, वह मैंने उनसे ही लिया है। अब पिक्चर का फील ईजी हो गया है। अब ड्रामेबाजी और चिल्लाचिली कम हो गई है। मैं भी बदल गया हूं। वरना, नए लोग मुझे चेंज कर देते।
नए फिल्मकारों का डर है आपके मन में?
डर तो होना चाहिए। नहीं तो मैं काम अच्छा कैसे करूंगा। डर नहीं होगा तो आदमी कब निकल जाएगा, पता नहीं चलेगा। नई जेनरेशन बहुत अच्छी है। नए लड़के कम पैसों में अच्छी पिक्चर बना रहे हैं। मैं उनकी सराहना करता हूं।
नई चीजों के लिए खुद को कैसे तैयार रखते हैं?
मैं वक्त के साथ चलता हूं। मैं अग्रेसिव नेचर का हूं, लेकिन पिक्चर सोच-समझकर बनाता हूं। मैं उम्र के साथ और सोचने लगा हूं। मैं अपनी रिस्पेक्ट के हिसाब से काम करता हूं। अब बचकाना काम नहीं करता।
आप फिल्म निर्माण में क्यों नहीं आए?
जरूरत क्या है? मैं आराम से काम कर रहा हूं। प्रोड्यूसर बन गया तो मैं चैन से बैठ नहीं पाऊंगा। जब तक निर्देशक हूं, तब तक टेंशन नहीं है। मेरा बेटा रोहित भी दूसरे निर्माता के लिए फिल्म बना रहा है।
डू नॉट डिस्टर्ब की कहानी क्या है?
डेविड धवन की फिल्म है। लोग बाहर निकलेंगे तो कहेंगे कि इसी की फिल्म है। फिल्म में मजेदार माहौल है। सब किरदार अजीब सी सिचुएशन में फंसते हैं और बाद में एक-एक करके निकल जाते हैं। मैं फिल्म की कहानी नहीं बताऊंगा। मेरी फिल्म में वनलाइनर नहीं होता, स्क्रीन प्ले होता है। गोविंदा, रितेश, सुष्मिता, लारा सभी कलाकारों ने नई एक्टिंग की है।
गोविंदा अंधविश्वासी हो गए हैं। उनके प्रोफेशनलिज्म पर भी सवाल उठ रहा है। सच्चाई क्या है?
गोविंदा बहुत अच्छा इंसान है। उसने मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं किया। उसको आप जैसे हैंडल करो, वह काम करता है। उसने डेढ़ सौ पिक्चर की है। उसका अपना तरीका है। लोगों का क्या है?
संपादन, निर्देशन और लेखन में आप किसे अधिक एंज्वाय करते हैं?
मैं एडीटर पहले हूं उसके बाद सब कुछ। एडीटर होने की वजह से ही मैं आज इतना बड़ा डायरेक्टर बना हूं। अब मैं फिल्मों का डॉक्टर बन गया हूं। मुझे एडीटिंग में मजा आता है। मैंने बारह साल एडीटिंग की है, तब निर्देशक बना। एडीटर होने की वजह से मैं शूटिंग के समय टाइम, पैसा सब बचाता हूं। मुझे बत्तीस साल हो गए तब भी नए लोगों को टक्कर दे रहा हूं। मैं खुद को जवान महसूस करता हूं।
छोटे पर्दे पर आने का क्या लाभ हुआ?
मैंने तीस साल फिल्में बनाईं, लेकिन सड़क पर निकलता था, तो मुझे कोई नहीं पहचानता था। अब लोग आकर कहते हैं कि मैंने आपको हंस बलिए में देखा। छोटे पर्दे की ताकत बढ़ गई है। पर्दे के पीछे के लोगों को टेलीविजन पहचान दिला रहा है।
-रघुवेन्द्र सिंह

No comments: