Friday, August 28, 2009

हंसाने की असफल कोशिश रही डैडी कूल | फिल्म समीक्षा

मुख्य कलाकार : सुनील शेट्टी, आरती छाबरिया, आशीष चौधरी, ट्यूलिप जोशी, आफताब शिवदासानी, जावेद जाफरी, किम शर्मा, सोफी चौधरी, चंकी पांडे, राजपाल यादव, प्रेम चोपड़ा।
निर्देशक : कुमार मुरली मोहन राव
तकनीकी टीम : निर्माता- अशोक ठाकरिया, इन्द्र कुमार, बैनर- मारूति इंटरनेशनल एवं बिग पिक्चर्स, कहानी-पटकथा- तुषार हीरानंदानी, संवाद- फरहाद-साजिद, संगीत-राघव सच्चर।
अंतिम संस्कार दुख की घड़ी होती है, लेकिन के मुरली मोहन राव ने अपनी फिल्म डैडी कूल में इस दुखद समय में हंसाने की कोशिश की है। गोवा के एक ऑफिसर डगलस लाजरस के अंतिम संस्कार में उनके सगे-संबंधी और दोस्त पहुंचते हैं। उन सभी की अपनी कहानी एवं अपनी समस्याएं हैं, जो अंतिम संस्कार के समय सामने आती हैं। एक नशीली दवा के सेवन के कारण कहानी के कुछ पात्र अजीबो-गरीब हरकतें करने लगते हैं, जिस पर आपको हंसी आ सकती हैं। आजकल समलैंगिकता हर निर्देशक का पसंदीदा विषय बना हुआ है, के मुरली मोहन राव ने भी अपनी फिल्म में इसे भुनाया है। राजपाल यादव अभिनीत पात्र अचानक जब मृतक व्यक्ति डगलस के बेटे को बताता है कि वह और उसके पिता लवर्स थे तो कहानी में दिलचस्प मोड़ आता है, लेकिन अंत में निर्देशक ने इस प्लॉट का जिस प्रकार अंत किया है, उससे कहानी कमजोर बन जाती है।
डैडी कूल अंग्रेजी फिल्म डेथ एट ए फ्यूनरल का ऑफिशियल हिंदी रीमेक है। फिल्म इंटरवल के पहले हंसाती है, लेकिन बाद में ऐसा लगता है कि सभी पात्र जबरदस्ती हंसाने की कोशिश कर रहे हैं। फिल्म के इमोशनल दृश्य भी कमजोर हैं। सभी कलाकारों का अभिनय औसत है।
रेटिंग-दो स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह