सुजॉय घोष अपनी नई फिल्म अलादीन की प्रेरणा मनमोहन देसाई को मानते हैं। पहली दोनों फिल्मों झंकार बीट्स और होम डिलीवरी से दर्शकों से वाहवाही लूटने में असफल रहे सुजॉय को उम्मीद है कि अलादीन से वे इस उद्देश्य में सफल होंगे। प्रस्तुत है सुजॉय घोष से बातचीत..
अलादीन किस प्रकार मनमोहन देसाई से प्रेरित है?
इसमें मनमोहन देसाई की फिल्मों की तरह मनोरंजन के सभी तत्व हैं। इसका अंत भी उन्हीं की फिल्मों की तरह है। हीरो, हीरोइन, विलेन सब अंत में एक स्थान पर मिलते हैं और नाच-गाना होता है और फिर मार-धाड़ होती है। बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। मैं मनमोहन देसाई की फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं। मैं बचपन से उनकी तरह कॉमर्शिअल फिल्म बनाना चाहता था। इस फिल्म से मेरी वह ख्वाहिश पूरी हो गई।
अलादीन के निर्माण की योजना कब बनी?
होम डिलीवरी की रिलीज के बाद मेरे मन में इस फिल्म का विचार आया। मेरी पहली फिल्म झंकार बीट्स सफल हुई थी, लेकिन होम डिलीवरी बुरी तरह फ्लॉप हो गई। उन फिल्मों से मेरा दर्शकों से व्यापक स्तर पर संपर्क नहीं बना। मैं नई फिल्म ऐसी बनाना चाहता था, जिससे मुझे विस्तृत पहचान मिले। अलादीन की कहानी फाइनल करने और इसके प्री-प्रोडक्शन में मुझे दो साल लग गए।
अलादीन की कहानी और इसके कलाकारों के चयन के बारे में बताएंगे?
मेरी फिल्म के हीरो का नाम अलादीन है, लेकिन वह लैंप वाला अलादीन नहीं है। अलादीन को उसके कॉलेज के लड़के हमेशा चिढ़ाते हैं और उससे लैंप घिसवाते हैं। अलादीन के कॉलेज में एक लड़की जैसमीन आती है और उसे उससे प्यार हो जाता है, लेकिन जैसमीन को उसके दूसरे दोस्त अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। एक दिन जैसमीन के सामने अलादीन से लड़के लैंप घिसवाते हैं और तभी पीछे से अचानक एक आदमी आ जाता है। वह जिन्न है। जिन्न अलादीन से कहता है कि मैं दो महीने में रिटायर होने वाला हूं। जल्दी से मुझसे तीन विश ले लो। यहीं से कहानी में मोड़ आता है। अलादीन नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है। अमिताभ बच्चन, संजय दत्त और रितेश देशमुख के बिना मैं इस फिल्म की कल्पना ही नहीं कर सकता था।
अमिताभ बच्चन को फिल्म के लिए राजी करने में आपको दिक्कत नहीं हुई?
बिल्कुल नहीं। मैं बच्चन जी के साथ काम करने की इच्छा लेकर इस फील्ड में आया था। मैं उनके पास कई फिल्मों की स्क्रिप्ट लेकर गया। उनमें से अलादीन उन्हें पसंद आई। उन्होंने जब मुझसे कहा कि वे इसमें काम करेंगे, तो मैं तो खुशी से पागल हो गया। मैं किसी फिल्म स्कूल नहीं गया, लेकिन इस फिल्म में सत्तर दिन उनके साथ काम करने के बाद मुझे लगा कि मैं किसी फिल्म के स्कूल से हो आया।
इस फिल्म का अनुभव आपके लिए सुखद रहा?
हां। अलादीन से मेरी कई ख्वाहिशें पूरी हो गई। मनमोहन देसाई जैसी पिक्चर बना ली और अमिताभ बच्चन के साथ काम भी कर लिया। भगवान मुझ पर मेहरबान थे, इसीलिए यह सब इतनी जल्दी हो गया। अब यही चाहता हूं कि फिल्म दर्शकों को पसंद आ जाए। इसमें मैंने आधुनिक तकनीकों का खूब इस्तेमाल किया है।
आपने किसी नई फिल्म पर काम शुरू किया है?
हां, मेरी अगली फिल्म थ्रिलर होगी। उसका हीरो एक हीरोइन है। उसके लिए विद्या बालन से संपर्ककिया है। जब फाइनल होगा, मैं सभी को बताऊंगा। मैं तय करके आया हूं कि हमेशा अलग जॉनर की फिल्म बनाऊंगा। खुद को एक तरह के सिनेमा तक सीमित नहीं रखूंगा। इस पर अलादीन की रिलीज के बाद काम शुरू करूंगा।
अलादीन किस प्रकार मनमोहन देसाई से प्रेरित है?
इसमें मनमोहन देसाई की फिल्मों की तरह मनोरंजन के सभी तत्व हैं। इसका अंत भी उन्हीं की फिल्मों की तरह है। हीरो, हीरोइन, विलेन सब अंत में एक स्थान पर मिलते हैं और नाच-गाना होता है और फिर मार-धाड़ होती है। बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। मैं मनमोहन देसाई की फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं। मैं बचपन से उनकी तरह कॉमर्शिअल फिल्म बनाना चाहता था। इस फिल्म से मेरी वह ख्वाहिश पूरी हो गई।
अलादीन के निर्माण की योजना कब बनी?
होम डिलीवरी की रिलीज के बाद मेरे मन में इस फिल्म का विचार आया। मेरी पहली फिल्म झंकार बीट्स सफल हुई थी, लेकिन होम डिलीवरी बुरी तरह फ्लॉप हो गई। उन फिल्मों से मेरा दर्शकों से व्यापक स्तर पर संपर्क नहीं बना। मैं नई फिल्म ऐसी बनाना चाहता था, जिससे मुझे विस्तृत पहचान मिले। अलादीन की कहानी फाइनल करने और इसके प्री-प्रोडक्शन में मुझे दो साल लग गए।
अलादीन की कहानी और इसके कलाकारों के चयन के बारे में बताएंगे?
मेरी फिल्म के हीरो का नाम अलादीन है, लेकिन वह लैंप वाला अलादीन नहीं है। अलादीन को उसके कॉलेज के लड़के हमेशा चिढ़ाते हैं और उससे लैंप घिसवाते हैं। अलादीन के कॉलेज में एक लड़की जैसमीन आती है और उसे उससे प्यार हो जाता है, लेकिन जैसमीन को उसके दूसरे दोस्त अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। एक दिन जैसमीन के सामने अलादीन से लड़के लैंप घिसवाते हैं और तभी पीछे से अचानक एक आदमी आ जाता है। वह जिन्न है। जिन्न अलादीन से कहता है कि मैं दो महीने में रिटायर होने वाला हूं। जल्दी से मुझसे तीन विश ले लो। यहीं से कहानी में मोड़ आता है। अलादीन नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है। अमिताभ बच्चन, संजय दत्त और रितेश देशमुख के बिना मैं इस फिल्म की कल्पना ही नहीं कर सकता था।
अमिताभ बच्चन को फिल्म के लिए राजी करने में आपको दिक्कत नहीं हुई?
बिल्कुल नहीं। मैं बच्चन जी के साथ काम करने की इच्छा लेकर इस फील्ड में आया था। मैं उनके पास कई फिल्मों की स्क्रिप्ट लेकर गया। उनमें से अलादीन उन्हें पसंद आई। उन्होंने जब मुझसे कहा कि वे इसमें काम करेंगे, तो मैं तो खुशी से पागल हो गया। मैं किसी फिल्म स्कूल नहीं गया, लेकिन इस फिल्म में सत्तर दिन उनके साथ काम करने के बाद मुझे लगा कि मैं किसी फिल्म के स्कूल से हो आया।
इस फिल्म का अनुभव आपके लिए सुखद रहा?
हां। अलादीन से मेरी कई ख्वाहिशें पूरी हो गई। मनमोहन देसाई जैसी पिक्चर बना ली और अमिताभ बच्चन के साथ काम भी कर लिया। भगवान मुझ पर मेहरबान थे, इसीलिए यह सब इतनी जल्दी हो गया। अब यही चाहता हूं कि फिल्म दर्शकों को पसंद आ जाए। इसमें मैंने आधुनिक तकनीकों का खूब इस्तेमाल किया है।
आपने किसी नई फिल्म पर काम शुरू किया है?
हां, मेरी अगली फिल्म थ्रिलर होगी। उसका हीरो एक हीरोइन है। उसके लिए विद्या बालन से संपर्ककिया है। जब फाइनल होगा, मैं सभी को बताऊंगा। मैं तय करके आया हूं कि हमेशा अलग जॉनर की फिल्म बनाऊंगा। खुद को एक तरह के सिनेमा तक सीमित नहीं रखूंगा। इस पर अलादीन की रिलीज के बाद काम शुरू करूंगा।
-raghuvendra singh
1 comment:
aesi film banane ke liye aapko bahut bahut badhai
jyotishkishore.blogspot.com
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