Monday, June 30, 2008

बहुत मिस करती हूं उन शरारतों को: मंदिरा बेदी

बचपन में हर बच्चा शरारती होता है, लेकिन मैं कुछ ज्यादा ही शरारतें किया करती थी। ऐसा मेरे मम्मी-पापा कहते है। मेरी शैतानी हरकतों से पूरा घर-मोहल्ला परेशान रहता था। कभी-कभी तो मेरे मम्मी-पापा को मुझे कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता था। इतना तंग करने के बावजूद, मुझे याद है उन्होंने कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाया बल्कि हमेशा प्यार से समझाया।
अनुशासन उनकी पहली सीख थी। इसके अलावा वे पढ़ाई से लेकर खेल-कूद, रिश्ते-नाते और वक्त की कीमत; सबकी अहमियत भी समझाते थे। सच कहूं तो उस वक्त उनकी वो बातें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं, लेकिन आज उनकी वैल्यू समझ में आती है। आज जीवन के हर मोड़ पर वो बातें कहीं न कहीं काम आती है।
मैं पढ़ने से ज्यादा खेलकूद पर ध्यान देती थी, फिर भी मेरे हर सब्जेक्ट में अच्छे मा‌र्क्स आते थे। सिवाय गणित के। गणित में मैं बहुत कमजोर थी। अक्सर मैं अपना गणित का पेपर घर लाती ही नहीं थी, लेकिन मेरी चोरी पैरेट-टीचर्स डे पर पकड़ जाती थी, जब मम्मी-पापा और मेरे टीचर्स एक-दूसरे से रू-ब-रू होते थे। उसके बाद मुझे डांट खानी पड़ती थी। मैं फिर भी सुधरी नहीं। दोबारा वही सब करती थी।
आज बचपन की उन मौज-मस्तियों को, उन शरारतों को और मम्मी-पापा की उन बातों को बहुत मिस करती हूं। सोचती हूं कि काश मेरा बचपन फिर से वापस लौट आए। मेरे बच्चे नहीं है। मुझे जब भी अपने बचपन को जीने की चाहत होती है, अपने भैया के बच्चों के पास सिंगापुर चली जाती हूं। उनके साथ खूब मौज-मस्ती करती हूं।
आज क्या है कि हम सबने इतनी तरह-तरह की चादरे ओढ़ ली है कि बचपन को चाहकर भी जी नहीं पाते। बचपन में एक सच्चाई होती है, इंसान को उसे खोना नहीं चाहिए। मेरे अंदर आज भी एक बच्ची छुपी हुई है जो मौका मिलते ही बाहर निकलकर आ जाती है। आज भी मौका मिलते ही मैं अपने पैरेट्स को तंग करने लग जाती हूं!

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