मुख्य कलाकार : अनुपम खेर, समीर दत्तानी, शाद रंधावा, आरती छाबरिया, शमा सिकंदर, गुलशन ग्रोवर, सतीश शाह व सतीश कौशिक
निर्देशक : शशि रंजन
तकनीकी टीम : निर्माता-शशि रंजन, संगीत-रूप कुमार राठौड़, गीत-शकील आजमी एवं परवीन कुमार अश्क, संवाद-अश्विनी धीर
मुंबई। बालीवुड में आजकल कामेडी फिल्मों का असफल दौर चल रहा है। फिल्मकार कहानी और स्क्रिप्ट पर बिना ध्यान दिए कामेडी के नाम पर दर्शकों को कुछ भी परोस रहे हैं। शशिरंजन ने फिल्म धूम धड़ाका के मामले में भी ऐसा ही कुछ किया है।
धूम धड़ाका को उन्होंने सिचुएशनल कामेडी फिल्म बनाने की कोशिश की है। जिसकी शुरुआत होती है बैंकाक में हो रही एशियाई डान की गंभीर मीटिंग से। जहां मुंबई के एक इलाके की जिम्मेदारी को लेकर डान मुंगीलाल और उसके विरोधी के बीच तनातनी होती है। आखिरकार तय होता है कि जिसका कोई वारिस हो, उसी का गैंग में दबदबा रहेगा। मुंगीलाल झूठ बोलता है कि उसका वारिस है, जबकि उसने शादी ही नहीं की है। उसे तीस दिन का वक्त दिया जाता है।
मुंगी अपने जिगरी दोस्त जिग्नेश के साथ मुंबई अपने भांजे कमल को ढूंढने आता है। जिग्नेश के कहने पर मुंगी एक लोकल जासूस को ढूंढने का जिम्मा सौंप बैंकाक वापस लौट जाता है। उसके बाद कमल के रूप में राहुल, शिबानी और रणबीर मुंगी के घर में आते हैं। सबका मकसद उसकी करोड़ों की जायदाद हथियाना है। मुंगी समझ नहीं पाता कि कौन असली कमल है? वह सबकी परीक्षा लेता है। अंत में बड़े नाटकीय तरह से कहानी को अंजाम दिया जाता है।
शशि रंजन ने जो कहानी चुनी है, उसके साथ वह पर्दे पर न्याय करने में असफल रहे हैं। अश्वनी धीर के संवाद कामचलाऊ किस्म के हैं। समीर दत्तानी और शाद रंधावा कामेडी में नहीं जमे हैं। आरती और शमा सिकंदर के रोल में दम नहीं है। अनुपम खेर का काम अच्छा है। कुल मिलाकर धूम धड़ाका में इसके नाम जैसी कोई बात नहीं है।
-रघुवेंद्र सिंह
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