Saturday, November 15, 2008

अब डांट नहीं पड़ती: शरमन जोशी/मेरा बचपन

[रघुवेंद्र सिंह]
रंगमंच की पृष्ठभूमि के युवा अभिनेता शरमन जोशी ने 'स्टाइल', 'रंग दे बसंती', 'गोलमाल', 'मेट्रो' और 'हैलो' जैसी चर्चित फिल्मों में विभिन्न किस्म के किरदार निभाकर दर्शकों के बीच अलग छवि बनायी है। आजकल वे राजकुमार हिरानी की फिल्म 'थ्री इडियट्स' की शूटिंग कर रहे हैं। मिलनसार स्वभाव के शरमन जोशी सप्तरंग के पाठकों को बता रहे हैं अपने चुलबुले बचपन के बारे में-
[शरारत से रहा गहरा नाता]
मैं नन्हीं उम्र में बहुत शरारती था, लेकिन सच कहूं तो मैंने कभी कोई शरारत जान-बूझ कर नहीं की। दरअसल, मुझे बचपन में खेलने का बहुत शौक था। जैसे ही पढ़ाई से फुरसत मिलती, मैं दोस्तों के साथ बिल्डिंग कंपाउंड में क्रिकेट, फुटबॉल या फिर हॉकी खेलने में जुट जाता था। खेल के दौरान बॉल का पड़ोसियों के घरों में जाना स्वाभाविक था। फिर क्या? बॉल लोगों के घरों में जाती और वे मम्मी के पास शिकायत लेकर आ जाते। उसके बाद मम्मी के सामने मेरी क्लास लग जाती थी। यह उन दिनों रोजमर्रा की बात हुआ करती थी।
[कभी मार नहीं पड़ी]
मम्मी-पापा के पास प्रतिदिन मेरी शिकायत आती थी। उसके बावजूद उन्होंने मुझ पर और मेरी बड़ी बहन मानसी पर कभी हाथ नहीं उठाया। हां, हमें डांट जरूर जमकर पड़ती थी। दरअसल, मम्मी-पापा ने निर्णय किया था कि वे कभी हम लोगों को मारेंगे नहीं। सच कहूं तो मम्मी-पापा मुझसे इतना प्यार करते हैं कि वे मेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकते। यही वजह है कि मैंने उन लोगों से जब जो मांगा, उन्होंने कभी इंकार नहीं किया। उन लोगों ने हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाया है।
[हमेशा पाई वाहवाही]
मैंने अपने स्कूल में हमेशा वाहवाही पाई। यह वाहवाही परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए नहीं होती थी, बल्कि खेलों में अच्छी परफॉर्मेस के लिए होती थी। मैं अपने स्कूल को क्रिकेट, फुटबॉल एवं हॉकी में रिप्रजेंट करता था। ज्यादातर हमारी टीम ही जीतती थी। मैं पढ़ने में औसत दर्जे का छात्र था। मेरे पसंदीदा विषय गणित, विज्ञान, भूगोल थे।
[हर सपना हुआ पूरा]
मेरा शुरू से एक्टर बनने का सपना था। इसकी अहम वजह यह थी कि मेरी परवरिश एक्टिंग के माहौल में हुई। मेरे पापा अरविंद जोशी गुजराती थिएटर के चर्चित कलाकार हैं। बड़ी बहन मानसी छोटे पर्दे का जाना-पहचाना चेहरा हैं। बहरहाल, अब मेरा एक्टर बनने का सपना पूरा हो चुका है। रही बात बचपन की तो मैं बचपन को मिस नहीं करता क्योंकि मैं आज भी बच्चा हूं। मैं शरारतें आज भी करता हूं, लेकिन अब मुझे कोई डांटता नहीं है। बस, यही फर्क महसूस करता हूं!

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