[रघुवेन्द्र सिंह]
मैं बचपन में बड़ा शर्मीला था। शरारती तो बिल्कुल नहीं था। मैं घर के एक कोने में चुपचाप अकेले बैठा रहता था। किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखता था। जब कभी बाहर जाता था तो बहुत रिजर्व रहता था। किसी से ज्यादा बात नहीं करता था। यह एक वजह है कि बचपन में मेरे बहुत ज्यादा दोस्त नहीं थे। मैं अकेले में ही मस्त रहता था। इस बात के लिए सब मुझसे शिकायत करते थे लेकिन मैं क्या करता?
पढ़ाई की बात बताऊं तो मैं जब दसवीं क्लास में था, तब पढ़ाई को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस था। शुरू से ही सब घर में कहने लगे थे कि दसवीं और बारहवीं की परीक्षा आसान नहीं होती है। मैं डर के मारे बहुत पढ़ाई करता था। पापा इस मामले में उतने ज्यादा सख्त नहीं थे। उन्होंने आज तक मुझे कभी डांटा तक नहीं है। हां, मम्मी पढ़ाई के मामले में बहुत स्ट्रिक्ट थीं। हमेशा पढ़ने के लिए कहा करती थीं।
सच कहूं तो आज मैं बचपन को बिल्कुल मिस नहीं करता हूं क्योंकि मैंने अपने बचपन को खूब अच्छी तरह से जिया है। इतनी अच्छी तरह कि मुझे कभी सपने देखने तक की फुरसत नहीं मिली। मैंने बचपन में कोई सपना नहीं देखा था कि मैं बड़ा होकर आर्किटेक्ट बनूंगा या फिर एक्टर बनूंगा। इस फील्ड में एक वजह यह भी हो सकती है कि एक्टर होने के नाते फिल्मों में बचपन जीने का मौका मिल जाता है। कुछ समय पहले आई फिल्म 'दे ताली' में मैंने दस साल के बच्चे की तरह बचपना किया था। बचपन बड़ा अनमोल होता है। यह सबकी जिंदगी का एक सुखद दौर होता है।
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