Friday, September 5, 2008

मैंने अपने अंदर इगो कभी नहीं आने दी: अनुपम खेर

-रघुवेंद्र सिंह
अभिनेता अनुपम खेर आतंकवाद पर आधारित फिल्म वेडनेसडे का हिस्सा बनकर बेहद खुश हैं। नीरज पांडे निर्देशित इस फिल्म में वे पुलिस कमिश्नर प्रकाश राठौड़ की भूमिका में हैं। अनुपम खेर के लिए यह फिल्म इसलिए भी खास है, क्योंकि इसमें वे नसीरुद्दीन शाह के साथ लगभग दस साल बाद स्क्रीन शेयर करते दिखाई देंगे। प्रस्तुत हैं, अनुपम खेर से हुई बातचीत के अंश..
मुंबई बम ब्लास्ट पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं। वेडनेसडे उनसे कितनी अलग है?
यह फिल्म आतंकवाद पर आधारित है और आतंकवाद आज पूरी दुनिया की मुख्य समस्या है। फिल्म की कहानी महज चार घंटे की है। पुलिस कमिश्नर प्रकाश राठौड़ के पास एक अनजान शख्स का फोन आता है कि पूरी मुंबई में पांच बम लगाए गए हैं और वह कुछ शर्ते भी रखता है। पुलिस और अपराधी पर बनी यह आधुनिक फिल्म है। नीरज पांडे ने बड़ी मेहनत की है और बहुत कुछ कहने का प्रयास भी किया है इसके जरिए।
सुना है आप जैसे कलाकार को भी इस किरदार के लिए काफी तैयारी करनी पड़ी?
दरअसल, फिल्म का चरित्र प्रकाश राठौड़ आम पुलिस कमिश्नरों जैसा नहीं है, जो अक्सर फिल्मों में यह कहते मिल जाते हैं कि हमने बिल्डिंग को चारों तरफ से घेर रखा है। यह बहुत स्ट्रॉन्ग किरदार है, जिसे लोग फिल्म देखने के बाद ही समझ पाएंगे। इसके लिए मैं पुलिस कमिश्नर जावेद अहमद से मिला और उनके साथ वक्त भी गुजारा। उनके काम करने के तरीके को सीखा। व्यक्तिगत तौर पर मुझे इन चीजों का काफी लाभ मिला। ऐक्टिंग ऐसी कला है, जिसकी पूरी तैयारी कभी नहीं हो सकती। इसमें मरते दम तक आपको सीखने के लिए बहुत कुछ होता है।
निर्देशक नीरज पांडे की यह पहली फिल्म है। उनकी क्षमता के बारे में आपकी क्या राय है?
इस वक्त नए निर्देशकों की जो पौध आ रही है, उनमें बहुत योग्यता है। नीरज पांडे कमाल के निर्देशक हैं। मुझे उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। मुझे अपने स्कूल के बच्चों को पढ़ाते समय यह काम आएगा। खास बात यह है कि नीरज अर्थपूर्ण सिनेमा की समझ रखते हैं। उम्मीद है, वे अच्छी फिल्में बनाएंगे।
एक तरफ आप वेडनेसडे जैसी अर्थपूर्ण फिल्म करते हैं और दूसरी तरफ धूम-धड़ाका जैसी फिल्में। ऐसा क्यों?
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मैंने धूम-धड़ाका जैसी बेकार फिल्में की हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हर दिन पुलाव नहीं खाया जा सकता! शशि मेरे मित्र हैं और मैं उन्हें कैसे कह सकता था कि तुम्हारी फिल्म घटिया है! कई बार रिश्तों की वजह से भी काम करना पड़ता है।
..लेकिन उन्हें फिल्म बनाने से पहले बता तो सकते थे कि जो कमियां हैं, उन्हें सुधार लें?
फिल्म बनने के बाद ही पता चलता है कि वह कैसी है! यदि पहले पता चल जाता, तो फ्लॉप फिल्में बनती ही नहीं!
करियर के इस पड़ाव पर आपके लिए सफलता-असफलता क्या मायने रखती है?
मेरे लिए कभी सफलता-असफलता का कोई महत्व नहीं रहा। मैं अपने करियर की शुरुआत से ही हर तरह के किरदार निभाता आ रहा हूं। आज भी मैं बदला नहीं हूं। मेरी सक्रियता की एक वजह यह भी है कि मैंने खुद को दायरे में सीमित नहीं किया और न ही अपने अंदर इगो आने दिया।
सिकंदर की दोनों फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर नहीं चलीं। क्या इससे उनके करियर पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
फिल्मों की कामयाबी और नाकामयाबी से कलाकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, ऐसा मुझे नहीं लगता। वैसे, सिकंदर अपना काम अच्छी तरह जानते हैं और जो आदमी काम जानता है, उसे आगे बढ़ने में परेशानी नहीं होती।
सिकंदर को लेकर फिल्म बनाने की योजना है?
फिलहाल नहीं, लेकिन जिस दिन अच्छी स्क्रिप्ट मिली, मैं अवश्य उन्हें लेकर फिल्म बनाऊंगा।
आपके होम-प्रोडक्शन की सक्रियता आजकल कम हो गई है?
ऐसी बात नहीं है। जल्द ही मेरे और सतीश के प्रोडक्शन की फिल्म हवाई दादा आने वाली है। इसके अतिरिक्त, हम दो-तीन फिल्मों की स्क्रिप्ट पर भी काम कर रहे हैं। जल्द ही उनके बारे में जानकारी देंगे।

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