लोकप्रिय टी.वी. अभिनेत्री श्वेता तिवारी का जन्म उत्तार प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ, लेकिन उनकी परवरिश सपनों की नगरी मुंबई में हुई। आपको जानकर हैरानी होगी कि श्वेता ने बारह वर्ष की उम्र में पांच सौ रुपए मासिक वेतन पर एक टै्रवल एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया था। इस स्तंभ में वे अपने बचपन की खंट्टी-मीठी यादों को शेयर कर रही हैं पाठकों से-
[नन्हीं उम्र में बन गई जिम्मेदार]
मेरा बचपन आम बच्चों की तरह नहीं गुजरा। मैंने जब होश संभाला तो एक टै्रवल एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया। वह काम मैं अपनी मर्जी से कर रही थी। परिवार की तरफ से किसी तरह का दबाव नहीं था। दरअसल, मम्मी मुझे तभी पॉकेटमनी देती थीं, जब मैं क्लास में अच्छे अंक लाती थी। किसी चीज के लिए मुझे मम्मी के सामने बार-बार हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता था। उनसे ही मुझे आत्मनिर्भर बनने की सीख मिली।
[थोड़ी शरारत, थोड़ी मस्ती]
मेरा बचपन मुंबई में गुजरा है। मैंने नन्हीं उम्र में ही मुंबई की भीड़ भरी सड़कों और बसों में सफर करना शुरू कर दिया था यानी जिंदगी की सच्चाइयों से परिचित हो गयी थी। मैं छुटपन में थोड़ी शरारती थी। मैं दोस्तों के साथ मिलकर ही मौज-मस्ती और शरारतें करती थी। सच कहूं तो मैं मम्मी के डर से हमेशा अच्छी बच्ची बनकर रहती थी।
[नौकरी के साथ जारी रखी पढ़ाई]
मैंने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। मैंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया है। बीजगणित मेरा पसंदीदा विषय था। कॉलेज के दिनों में मुझे प्रेमचंद की कहानियां पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। उन दिनों हम बेसब्री से गरबा का इंतजार करते रहते थे। मैं नवरात्रि में लगातार नौ दिन गरबा खेलती थी। उसी दौरान हमारी परीक्षाएं भी होती थीं। उसके बावजूद हम देर रात गरबा खेलते और सुबह सात बजे परीक्षा देने जाते थे। मस्ती भरे उन दिनों को आज मैं बहुत मिस करती हूं।
[बेटी में देखती हूं अपना बचपन]
मैं बचपन को बिल्कुल मिस नहीं करती, क्योंकि मेरी बेटी पलक के रूप में आज भी मेरा बचपन मेरे सामने हंसता-खेलता रहता है। मैं पलक के साथ बच्ची बनकर रहती हूं। मैं अपनी बेटी को सुनहरा बचपन देने की कोशिश कर रही हूं। मेरा बचपन जिन खुशियों से अछूता रह गया था, अब मैं पलक के साथ मिलकर उन सारी खुशियों को समेट रही हूं। जिंदगी के इस खुशनुमा दौर को मैं जी-भर के जी रही हूं।
[खेलकूद भी है जरूरी]
मैं हर माता-पिता से कहना चाहूंगी कि वे अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद के लिए भी प्रोत्साहित करें। अपने बच्चे के सर्वागीण विकास पर ध्यान दें। बच्चों को मारें नहीं बल्कि उन्हें प्यार से समझाएं और बच्चे भी माता-पिता की बात को ध्यान से सुनें। उनकी सीखों पर अमल करें। उनकी डांट के पीछे छिपे प्यार को समझें।
[रघुवेंद्र सिंह]
[नन्हीं उम्र में बन गई जिम्मेदार]
मेरा बचपन आम बच्चों की तरह नहीं गुजरा। मैंने जब होश संभाला तो एक टै्रवल एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया। वह काम मैं अपनी मर्जी से कर रही थी। परिवार की तरफ से किसी तरह का दबाव नहीं था। दरअसल, मम्मी मुझे तभी पॉकेटमनी देती थीं, जब मैं क्लास में अच्छे अंक लाती थी। किसी चीज के लिए मुझे मम्मी के सामने बार-बार हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता था। उनसे ही मुझे आत्मनिर्भर बनने की सीख मिली।
[थोड़ी शरारत, थोड़ी मस्ती]
मेरा बचपन मुंबई में गुजरा है। मैंने नन्हीं उम्र में ही मुंबई की भीड़ भरी सड़कों और बसों में सफर करना शुरू कर दिया था यानी जिंदगी की सच्चाइयों से परिचित हो गयी थी। मैं छुटपन में थोड़ी शरारती थी। मैं दोस्तों के साथ मिलकर ही मौज-मस्ती और शरारतें करती थी। सच कहूं तो मैं मम्मी के डर से हमेशा अच्छी बच्ची बनकर रहती थी।
[नौकरी के साथ जारी रखी पढ़ाई]
मैंने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। मैंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया है। बीजगणित मेरा पसंदीदा विषय था। कॉलेज के दिनों में मुझे प्रेमचंद की कहानियां पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। उन दिनों हम बेसब्री से गरबा का इंतजार करते रहते थे। मैं नवरात्रि में लगातार नौ दिन गरबा खेलती थी। उसी दौरान हमारी परीक्षाएं भी होती थीं। उसके बावजूद हम देर रात गरबा खेलते और सुबह सात बजे परीक्षा देने जाते थे। मस्ती भरे उन दिनों को आज मैं बहुत मिस करती हूं।
[बेटी में देखती हूं अपना बचपन]
मैं बचपन को बिल्कुल मिस नहीं करती, क्योंकि मेरी बेटी पलक के रूप में आज भी मेरा बचपन मेरे सामने हंसता-खेलता रहता है। मैं पलक के साथ बच्ची बनकर रहती हूं। मैं अपनी बेटी को सुनहरा बचपन देने की कोशिश कर रही हूं। मेरा बचपन जिन खुशियों से अछूता रह गया था, अब मैं पलक के साथ मिलकर उन सारी खुशियों को समेट रही हूं। जिंदगी के इस खुशनुमा दौर को मैं जी-भर के जी रही हूं।
[खेलकूद भी है जरूरी]
मैं हर माता-पिता से कहना चाहूंगी कि वे अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद के लिए भी प्रोत्साहित करें। अपने बच्चे के सर्वागीण विकास पर ध्यान दें। बच्चों को मारें नहीं बल्कि उन्हें प्यार से समझाएं और बच्चे भी माता-पिता की बात को ध्यान से सुनें। उनकी सीखों पर अमल करें। उनकी डांट के पीछे छिपे प्यार को समझें।
[रघुवेंद्र सिंह]
5 comments:
श्वेता तिवारी से मिलकर अच्छा लगा.....धन्यवाद।
she is a role model for new generation.....
She is a role model for youngster....She is superb....
Good! keep going...
Good! keep going...
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