फिल्मजगत में सफलता की सीढि़यां चढ़ रही अभिनेत्री रीमा सेन का बचपन कोलकाता में गुजरा। दक्षिण भारतीय फिल्मों में अभिनय का सिक्का जमाने के बाद वे वर्ष 2001 में मुंबई आयीं थीं। उसी साल फरदीन खान के साथ उनकी पहली हिंदी फिल्म 'हम हो गए आपके' प्रदर्शित हुई। इस फिल्म के बाद 'मालामाल वीकली' में अभिनय करने वाली रीमा अब एक नई हास्य फिल्म 'चल चला चल' में नजर आ रही हैं। इस स्तंभ में वे पाठकों को बता रही हैं अपने बचपन के बारे में-
[खूब की शरारतें]
मैं अपने परिवार में पहली बेटी थी, यही वजह है कि मुझे सबका खूब प्यार मिला। सबके बेपनाह प्यार ने मुझे शरारती बना दिया, हालांकि मेरी शरारतें कभी किसी की परेशानी का सबब नहीं बनीं। मैंने मम्मी-पापा को कभी तंग नहीं किया, इसलिए मुझे बचपन में मार भी नहीं पड़ी। मम्मी-पापा के पास कभी मेरी शिकायत भी नहीं आयी। मेरा बचपन छोटी बहन और दोस्तों के साथ बीता है। उनके साथ खेलना-कूदना और मस्ती करना मुझे आज भी याद है।
[पढ़ने में अच्छी थी]
मैंने कोलकाता में एक कान्वेंट स्कूल से पढ़ाई की। वहां बहुत सख्ती थी। उस स्कूल ने मुझे वक्त का पाबंद बनाया। मैं समय से स्कूल जाती थी और फिर घर वापस लौट आती थी। मैं पढ़ने में अच्छी थी। इतिहास मेरा पसंदीदा विषय था। मैं खेलकूद में जीरो थी। स्कूल के स्पोर्ट कांपटिशन में कभी हिस्सा नहीं लेती थी, दरअसल, पढ़ाई में मेरा मन अधिक लगता था।
[ढेरों सपने देखे]
मैं बचपन में बहुत सपने देखती थी। कभी सोचती थी कि बड़ी होकर डॉक्टर बनूंगी और कभी इंजीनियर, लेकिन सच कह रही हूं, मैंने अभिनेत्री बनने के बारे में कभी नहीं सोचा था। मेरा एक्टिंग में आना शायद ईश्वर ने ही तय किया था। मैं पढ़ाई कर रही थी, तभी मॉडलिंग के ऑफर आने लगे और जब मॉडलिंग में आयी तो एक्टिंग के ऑफर मिलने लगे। मुझे यह फील्ड आकर्षक लगी। अब मेहनत कर रही हूं और इस फील्ड में सम्मानित स्थान बनाने का प्रयास कर रही हूं।
[दिल से जिया बचपन]
मैंने बचपन के एक-एक पल को दिल से जिया है और जीवन के मौजूदा दौर को भी एंज्वॉय कर रही हूं। मैं आने वाले कल को लेकर बहुत उत्साहित रहती हूं और यह भी सोचती हूं कि बीते कल में शायद मेरे लिए कोई मजेदार चीज छुपी हो। आज के बच्चों में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का अभाव साफ नजर आता है। मैं चाहूंगी कि वे अपने बड़ों से इन बातों को सीखें। मन लगाकर पढ़ाई करें और खेलकूद में हिस्सा लें। अच्छा इंसान बनें। बड़ों की इज्जत करना सीखें!
[रघुवेंद्र सिंह]
[खूब की शरारतें]
मैं अपने परिवार में पहली बेटी थी, यही वजह है कि मुझे सबका खूब प्यार मिला। सबके बेपनाह प्यार ने मुझे शरारती बना दिया, हालांकि मेरी शरारतें कभी किसी की परेशानी का सबब नहीं बनीं। मैंने मम्मी-पापा को कभी तंग नहीं किया, इसलिए मुझे बचपन में मार भी नहीं पड़ी। मम्मी-पापा के पास कभी मेरी शिकायत भी नहीं आयी। मेरा बचपन छोटी बहन और दोस्तों के साथ बीता है। उनके साथ खेलना-कूदना और मस्ती करना मुझे आज भी याद है।
[पढ़ने में अच्छी थी]
मैंने कोलकाता में एक कान्वेंट स्कूल से पढ़ाई की। वहां बहुत सख्ती थी। उस स्कूल ने मुझे वक्त का पाबंद बनाया। मैं समय से स्कूल जाती थी और फिर घर वापस लौट आती थी। मैं पढ़ने में अच्छी थी। इतिहास मेरा पसंदीदा विषय था। मैं खेलकूद में जीरो थी। स्कूल के स्पोर्ट कांपटिशन में कभी हिस्सा नहीं लेती थी, दरअसल, पढ़ाई में मेरा मन अधिक लगता था।
[ढेरों सपने देखे]
मैं बचपन में बहुत सपने देखती थी। कभी सोचती थी कि बड़ी होकर डॉक्टर बनूंगी और कभी इंजीनियर, लेकिन सच कह रही हूं, मैंने अभिनेत्री बनने के बारे में कभी नहीं सोचा था। मेरा एक्टिंग में आना शायद ईश्वर ने ही तय किया था। मैं पढ़ाई कर रही थी, तभी मॉडलिंग के ऑफर आने लगे और जब मॉडलिंग में आयी तो एक्टिंग के ऑफर मिलने लगे। मुझे यह फील्ड आकर्षक लगी। अब मेहनत कर रही हूं और इस फील्ड में सम्मानित स्थान बनाने का प्रयास कर रही हूं।
[दिल से जिया बचपन]
मैंने बचपन के एक-एक पल को दिल से जिया है और जीवन के मौजूदा दौर को भी एंज्वॉय कर रही हूं। मैं आने वाले कल को लेकर बहुत उत्साहित रहती हूं और यह भी सोचती हूं कि बीते कल में शायद मेरे लिए कोई मजेदार चीज छुपी हो। आज के बच्चों में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का अभाव साफ नजर आता है। मैं चाहूंगी कि वे अपने बड़ों से इन बातों को सीखें। मन लगाकर पढ़ाई करें और खेलकूद में हिस्सा लें। अच्छा इंसान बनें। बड़ों की इज्जत करना सीखें!
[रघुवेंद्र सिंह]
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