Friday, January 2, 2009

सब मुझ पर बहुत गुस्सा हुए: तनुश्री दत्ता/बचपन

[रघुवेंद्र सिंह]
तनुश्री दत्ता झारखंड के जमशेदपुर शहर में पली-बढ़ी हैं। बचपन से तेज-तर्रार और महत्वाकांक्षी तनुश्री ने मिस इंडिया और फिर हिंदी फिल्मों की हसीन दुनिया तक का सफर तय किया। उन्हें 'ब्रेन विद ब्यूटी' कहा जाता है। वे यहां सप्तरंग के पाठकों से अपने बचपन की सुनहरी यादों को बांट रही हैं-
[बहुत डरती थी माँ से]
नन्हीं उम्र में मैं बहुत शरारतें करती थी। इसी वजह से मुझे मम्मी की खूब डांट पड़ती थी। वे मुझे पढ़ाई करने के लिए कहती थीं और मैं खेलने के लिए आतुर रहती थी। मैं अपनी माँ को खुश रखने के लिए ही पढ़ाई करती थी। मैं पहली से दसवीं तक हमेशा अपनी कक्षा में फ‌र्स्ट आयी। यदि छमाही परीक्षा में मेरे अंक कम आते थे तो मेरी रात की नींद गायब हो जाती थी, क्योंकि फिर दोस्तों के साथ बाहर जाकर छुंट्टी मनाने की परमिशन नहीं मिलती।
[हमेशा अव्वल रही पढ़ाई में]
मैं पढ़ने में शुरू से तेज थी। आपको यकीन नहीं होगा, मुझे विलियम शेक्सपियर के उपन्यासों के संवाद पेज नंबर के साथ याद रहते थे। मेरे पसंदीदा विषय हिंदी, इतिहास और जीवविज्ञान थे। मैं पढ़ाई के साथ खेलकूद एवं स्कूल-कॉलेज की अन्य प्रतियोगिताओं में खूब हिस्सा लेती थी। खेल में मुझे टेबल टेनिस और ट्रैकिंग पसंद था। मैंने वाद-विवाद, कविता लेखन, डांस आदि की प्रतियोगिताओं में ढेरों पुरस्कार जीते हैं।
[वे पल नहीं भूलूंगी]
मैंने ग्रेजुएशन पूना के सी.सी. कॉलेज से किया है। वहां मैं हॉस्टल में रहती थी। हॉस्टल की एक शरारत मैं आज तक नहीं भूल पायी हूं। 26 जनवरी के दिन हम सभी को सुबह ही तैयार होकर परेड के लिए ग्राउंड में पहुंचना होता था। मैं 25 जनवरी की रात दो बजे अपने दोस्तों के साथ बाहर से आयी। मुझे शरारत सूझी और मैंने उसी वक्त सभी सीनियरों को जगा दिया और कहा कि सुबह हो गई है। सभी नहा-धोकर तुरंत तैयार हुए और ग्राउंड में पहुंच गए। वहां कुछ देर खड़े होने के बाद सभी को एहसास हुआ कि अरे, अभी तो काफी रात है। सब मुझ पर बहुत गुस्सा हुए, लेकिन मैं दोस्तों के साथ खूब हंसी।
[बड़ी होकर खुश हूं]
जब मैंने 2004 में मिस इंडिया का खिताब जीता, तब मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मैं बड़ी हो गई हूं। अब मैं पहले की तरह कोई भी गैर जिम्मेदाराना हरकत नहीं कर सकती। जिम्मेदारियां आते ही मेरा बचपन मुझसे पीछे चला गया, लेकिन मैं बड़ी होकर खुश हूं। अब मैं अपना हर मनचाहा काम कर सकती हूं। कभी-कभी बचपन मिस करती हूं, क्योंकि मैं भी इंसान हूं।
[जी भर के जीएं बचपन]
मैंने अपना बचपन खूब एंज्वाय किया। मैं बच्चों से कहूंगी कि वे बचपन के एक भी पल को जाया न करें। अपने माता-पिता की इज्जत करें और उनकी हर बात मानें, क्योंकि वे आपके हित के लिए ही डांटते या फिर आप पर हाथ उठाते हैं। ऐसा काम करें कि आपके माता-पिता का सिर समाज में गर्व से ऊंचा हो जाए। मन लगाकर पढ़ाई करें और सोच-समझकर ही अपना कॅरियर चुनें!

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