Saturday, January 24, 2009

हर कदम पर मिला अभिभावकों का साथ: ईशा शरवनी/बचपन

ईशा शरवनी ने सुभाष घई की फिल्म 'किसना' से बॉलीवुड में कदम रखा। उसके बाद 'वे दरवाजा बंद रखो', 'रॉकी', 'गुड ब्वॉय-बैड ब्वॉय', 'यू मी और हम' और 'लक बाई चांस' आदि फिल्मों में नजर आयीं। अभिनेत्री होने के साथ ही ईशा कुशल नृत्यांगना भी हैं। वे अब तक बाइस देशों में नृत्य प्रदर्शन कर चुकी हैं। वे अपने नटखट बचपन के बारे में बता रही हैं-
खूब शरारत करती थी
मैं बचपन में दोस्तों के साथ मिलकर खूब शरारत करती थी और जमकर मौज-मस्ती करती थी। किसी की सुनती नहीं थी, हमेशा मन की करती थी। यही वजह है कि मुझे मम्मी-डैडी की डांट भी खूब पड़ती थी। हाँ, मम्मी-डैडी ने मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया। मैं गलती करती थी तो वे प्यार से मुझे समझाते थे।
बनना चाहती थी बहुत कुछ
मैं पढ़ाई में अच्छी थी। हिस्ट्री और बायोलॉजी मेरे पसंदीदा सब्जेक्ट थे। इसके साथ ही मैं खेलने में भी तेज थी। मैं बचपन में बहुत कुछ बनने के सपने देखती थी। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे हमेशा मम्मी-डैडी का सपोर्ट मिला। मैंने जब डांसर बनने की इच्छा जाहिर की तो मम्मी-पापा ने मुझे वह करने की छूट दी, जब इंजीनियर बनने की बात कही तो उन्होंने उसमें भी सपोर्ट किया और मैंने जब कहा कि मैं एक्टिंग करना चाहती हूं तो उन्होंने फिर मेरा उत्साह बढ़ाया। ऐसे पैरेंट्स बहुत कम बच्चों को मिलते हैं।
घूमती रहती थी देश-विदेश
मेरे मम्मी-डैडी कला की दुनिया से जुड़े हैं। मम्मी नृत्यांगना हैं और पापा म्यूजीशियन। वे कार्यक्रमों के सिलसिले में देश-विदेश घूमते रहते थे। उनके साथ-साथ मैं भी हर जगह जाया करती थी। वाकई, मेरी लाइफस्टाइल बहुत शानदार थी। मैंने अपनी जिंदगी का काफी समय वृंदावन में गुजारा है। दरअसल, मम्मी वेदों पर शोध के सिलसिले में काफी समय तक वहां रही थीं।
अच्छे कामों के लिए याद रखे दुनिया
मैंने मम्मी-डैडी के गुणों को आत्मसात करने की कोशिश की है। अब स्टेज शो में उनका साथ देती हूं। मैंने लक्ष्य बनाया है कि मैं भारत की संस्कृति, सभ्यता और नृत्य से युवा पीढ़ी को जोडूंगी। मैं एक्टिंग को गंभीरता से नहीं लेती, नृत्य मेरे लिए प्राथमिकता है। मैं चाहती हूं कि जब मैं दुनिया छोड़कर जाऊं तो लोग अच्छे कार्य के लिए मुझे याद रखें।
बहुत याद आता है बचपन
मैं हर पल जीने में यकीन करती हूं। मैंने बचपन के दिनों को खूब एंज्वॉय किया और अब जिंदगी के इस पड़ाव को भी एंज्वॉय कर रही हूं। सच कहूं तो बचपन के दिन बहुत याद आते हैं। दरअसल उस समय किसी बात की चिंता नहीं होती थी। वैसे, मैं अभी बच्ची ही हूं और मुझे लंबी दूरी तय करनी है!
[रघुवेंद्र सिंह]

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