Monday, July 28, 2008

ऐक्टिंग में कर सकता हूं वापसी: अमोल पालेकर

-रघुवेंद्र सिंह
चर्चित फिल्मकार अमोल पालेकर ने 2005 में शाहरुख खान और रानी मुखर्जी को लेकर फिल्म पहेली का निर्माण किया था। अब वे नई फिल्म दुमकटा लेकर आ रहे हैं, जो कि उनकी निर्देशित पहली कॉमेडी फिल्म है। वे इस फिल्म से अपने पसंदीदा फिल्मकार ऋषिकेष मुखर्जी और बासु चटर्जी को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। पेश है, इस फिल्म को लेकर अमोल पालेकर से हुई बातचीत के प्रमुख अंश..
आपकी फिल्म दुमकटा में क्या खास बात है?
बच्चों की एक कॉमेडी फिल्म है यह। हाल ही में मैंने इसकी शूटिंग खत्म की है। इसे सपरिवार देखा जा सकता है। मुझे सपरिवार कहना इसलिए जरूरी लग रहा है, क्योंकि आज जब किसी फिल्म को बच्चों की फिल्म कहा जाता है, तो हम उसे एक स्थान पर स्लॉट कर देते हैं और यह मान लेते हैं कि वह फिल्म बड़ों का मनोरंजन नहीं कर सकती! लोग मुझसे अक्सर यही सवाल करते रहते हैं कि आपने जैसी फिल्मों में काम किया है, वैसी फिल्में क्यों नहीं बनाते? यह फिल्म उनका जवाब है। इसमें कोई हंगामा, ड्रामेबाजी और ऊटपटांग बात नहीं है। यह फिल्म मेरे फेवॅरिट निर्देशक बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि है।
दुमकटा की कहानी क्या है?
फिल्म की कहानी एक शहरी जोड़े और उनके दो बच्चों के इर्दगिर्द घूमती है। इससे ज्यादा मैं अभी कहानी के बारे में जानकारी नहीं दे सकता। अपनी इस फिल्म से मैं दो नए बच्चों खुश और असीम को इन्ट्रोड्यूस कर रहा हूं। दोनों ने कमाल का काम किया है। इसमें ओमपुरी, सचिन खेड़ेकर और शेरनाज पटेल ने भी काम किया है।
बच्चों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
बच्चों के साथ काम करने में मुझे कभी कोई दिक्कत हुई ही नहीं। मैंने काफी अरसे पहले बच्चों को लेकर एक सीरियल कच्ची धूप बनाया था, जिसे आज भी लोग याद करते हैं। अब एक बार फिर बच्चों के साथ काम करने का मौका मिला है। बच्चों के साथ काम करने में मुझे बहुत मजा आया।
आपने अभिनय से दूरी क्यों बना ली?
कई कारण हैं इसके। पहला यह कि मैं जिस तरह की फिल्मों से जुड़ा था, यानी समानांतर सिनेमा, वह मुझे खत्म होता प्रतीत हुआ। इसलिए मेरी रुचि स्वत: अभिनय से कम हो गई। दूसरा कारण यह भी है कि मैं जिस तरह के किरदार निभा चुका था, ठीक उसी तरह की भूमिकाओं के प्रस्ताव मेरे पास आ रहे थे, जबकि मैं अपने दर्शकों को कुछ नया देना चाहता था। मेरी उम्र के हिसाब से जैसे चैलेंजिंग रोल मुझे चाहिए थे, वे मुझे नहीं मिले। ये दो प्रमुख कारण हैं, जिनकी वजह से मैंने ऐक्टिंग से खुद को दूर कर लिया।
यानी आपको कुछ नया करने का मौका मिले, तो आप ऐक्टिंग में वापस आ सकते हैं?
बिल्कुल, लेकिन मुझे उस किरदार में एक डर महसूस होना चाहिए कि क्या मैं उसे कर पाऊंगा? यानी उस किरदार में चुनौती होनी चाहिए। मैं जानता हूं कि ऐक्टिंग में वापस आना मेरे लिए बहुत बड़ा रिस्क होगा, क्योंकि यदि मैं असफल हो गया, तो सब लोग मुझ पर हंसेंगे कि देखो, अमोल पालेकर यह नहीं कर पाए! अपने लिए मैं बस यही डर चाहता हूं।
नए निर्देशकों के साथ काम करेंगे?
मैं जब अपने करियर के चरम पर था, उस वक्त नए निर्देशकों के साथ काम करने से नहीं डरा, तो फिर आज डर कैसा? लोगों को नए निर्देशकों केसाथ काम करने में असफलता का डर रहता था, लेकिन सच तो यह है कि मुझे यही चीज एक्साइट करती है। आज नए डायरेक्टर प्रशंसनीय काम कर रहे हैं। मुझे उनके साथ काम करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।
आप फिल्म पहेली के बॉक्स-ऑफिस पर असफल होने की क्या वजह मानते हैं?
क्या सिर्फ बॉक्स-ऑफिस ही सफलता का एकमात्र मापदंड है? मुझे पर्सनली पहेली का बहुत अच्छा स्पिॉन्स मिला था। निर्माता शाहरुख ने उस वक्त मुझसे यही कहा था कि उन्होंने इस फिल्म से खूब पैसा बनाया और इसीलिए वे बहुत खुश भी हैं। मेरी ऑडियंस ने फिल्म को खूब एंज्वॉय किया। श्याम बेनेगल और जावेद अख्तर जैसे लोगों ने फिल्म की सराहना की। अब जब पहेली से सब लोग खुश हैं, फिर मुझे और क्या चाहिए? हर फिल्म की सफलता की अलग-अलग परिभाषा होनी चाहिए, यह हम भूल गए हैं। यदि आप पहेली की कमाई की तुलना ओम शांति ओम से करेंगे, तो ओम शांति ओम मैंने तो नहीं बनाई! मैं और शाहरुख दोनों फिल्म की कमाई से खुश हैं। बाकी उसकी सफलता को लेकर किसी के दिमाग में यदि कंफ्यूजन है, तो मुझे पता नहीं!
आज जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं, तो किसी चीज का पछतावा होता है?
नहीं, क्योंकि जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे खुशी होती है कि मैं एक ऐक्टर के रूप में अच्छी फिल्में कर सका। इंडस्ट्री के टॉप के निर्देशकों और तकनीशियनों के साथ काम कर सका। एक डायरेक्टर के रूप में जैसी फिल्में बनाना चाहता था, बिना किसी समझौते के बनाई। अपनी शर्तो पर काम किया। शायद यही वजह है कि लोग आज भी मुझे दिल-ओ-जान से प्यार करते हैं।
आगे की क्या योजना है?
अभी तो बस फिल्म दुमकटा को रिलीज करने की तैयारी कर रहे हैं। बाकी कुछ नहीं है।

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