Saturday, July 26, 2008

छुटपन में थी मैं शरारती नंबर वन: प्रीति जिंटा



[रघुवेंद्र सिंह]
प्रीति जिंटा बड़े पर्दे पर अक्सर गंभीर भूमिकाएं जीवंत करती दिखती हैं, जबकि रीयल लाइफ में वे चुलबुली, बिंदास और नटखट स्वभाव की हैं। अपनी हरकतों से वे दोस्तों और सह-कलाकारों को खूब तंग करती हैं। आओ जानते हैं प्रीति के बचपन की बातें, उन्हीं की जुबानी!
[बहुत शैतान थी मैं]
मैं बचपन में बहुत शैतान थी। मेरी कोई सहेली नहीं थी। मेरे सारे दोस्त लड़के थे। लड़कों के साथ खेलना और शैतानियां करना मेरी आदत थी। मेरे दोनों भाइयों की वजह से लड़कों से मेरी दोस्ती हुई। मेरे भाई और उनके दोस्त जो शरारतें किया करते थे, मैं उसमें नंबर वन रहती थी। ऐसे में जाहिर सी बात है कि मुझे थप्पड़ भी खूब पड़ते थे।
[लड़कों जैसी हुई परवरिश]
मैं पढ़ाई में तो अच्छी थी ही, साथ ही खेल-कूद एवं स्कूल की एक्स्ट्रा-करीकुलर एक्टिविटीज में जमकर हिस्सा लेती थी। मैं किताबी कीड़ा नहीं थी। मेरे टीचर हैरान हो जाते थे कि मैं खेल-कूद के साथ इतने अच्छे मा‌र्क्स कैसे लाती हूं? उस समय कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं था। हम लोग आउटडोर गेम ज्यादा खेलते थे। पापा ने मुझे लड़की की तरह कभी ट्रीट नहीं किया। वह मुझे मेरे भाइयों के साथ कराटे सीखने भेजते थे। हां, मम्मी मुझे हमेशा लड़कियों की तरह देखना चाहती थीं।
[कथक क्लास में कराटे]
एक बार क्या हुआ कि मम्मी ने कथक सीखने के लिए डांस क्लास में मेरा एडमिशन करवा दिया। वहां किसी बात पर एक लड़की से मेरी बहस हो गई। फिर मैंने वहां कत्थक सीखने की बजाय सबकी जमकर पिटाई कर दी। मेरा कराटे सीखना वहां पहली बार काम आया। फिर मम्मी ने कभी मुझे कथक सीखने नहीं भेजा।
[बचपन मतलब फन]
मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे अपने बचपन को उतना एंज्वॉय कर पाते हैं। दस साल की उम्र में वे पन्द्रह साल के दिखने लगते हैं। आज के बच्चे वक्त से पहले बड़े हो जा रहे हैं। मैं खुश हूं कि हम उस वक्त दुनिया में आए, जब लोग जिंदगी आराम से जीते थे। हर पल को जीने के लिए लोगों के पास वक्त होता था। बचपन मतलब फन और मैं आज भी खूब मस्ती करती हूं।


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