लोकप्रिय पार्श्वगायक उदित नारायण के बेटे आदित्य नारायण छोटी उम्र से ही अभिनय एवं गायन की दुनिया में सक्रिय हैं। आजकल वे जी टी.वी. के रियैलिटी शो 'सा रे गा मा पा' में बतौर एंकर नजर आ रहे हैं। वे जल्द ही विक्रम भंट्ट की फिल्म 'शापित' में मुख्य भूमिका निभाते दिखाई देंगे। आदित्य पाठकों को बता रहे हैं अपने नटखट बचपन के बारे में-
[चलता था सीना तान के]
मैं बचपन में बहुत घमंडी और नकचढ़ा था। स्कूल एवं सोसायटी के बच्चों के बीच हमेशा कॉलर ऊपर करके चलता था। मैं खुद शैतानियां करता था और इल्जाम दूसरों पर लगा देता था। दरअसल, मुझे नन्हीं उम्र में इस बात का एहसास था कि मैं मशहूर गायक उदित नारायण का बेटा हूं। साथ ही, मैं बचपन से ही एक्टिंग और सिंगिंग कर रहा था, इसलिए भी अपनी उम्र के बच्चों के बीच सीना तान के चलता था।
[साथ रखता था प्रैंक बॉक्स]
मैं बचपन में प्रैंक बॉक्स हमेशा साथ रखता था। अरे, प्रैंक बॉक्स से याद आया। मैं उस वक्त कक्षा नौ में था। मेरा मुंबई के उत्पल सांघवी स्कूल में एडमिशन हुआ था। एक दिन मराठी भाषा की क्लास चल रही थी और मैं बोर हो रहा था। तभी मेरे हाथ प्रैंक बॉक्स लग गया और मैंने कैंची निकाली। इसके बाद मैंने आगे बैठे लड़के के सिर के पीछे के बाल अजीब ढंग से काट दिए। उसने टीचर से शिकायत कर दी और मेरी मम्मी को स्कूल बुलाया गया। मैं डरा था कि मम्मी मुझे बहुत डांटेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। स्कूल से वापस लौटते वक्त मम्मी ने हंसते हुए कहा कि मैंने भी अपने स्कूल में एक बार ऐसा ही किया था। उसके बाद हम दोनों खूब हंसे।
[रोज शिकायत आती थी घर पर]
मुझे बचपन में पापा से बहुत मार पड़ती थी, जबकि मम्मी केवल डांट कर छोड़ देती थी। दरअसल, कोई न कोई प्रतिदिन मेरी शिकायत लेकर घर आ जाता था। पापा को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आती थी। यही वजह है कि मुझे उनके हाथों मार खानी पड़ती थी। मैं बचपन में मम्मी के अधिक करीब रहा। मैं मम्मी का दुलारा था।
[हर कक्षा में आया फर्स्ट क्लास]
मुझे छोटी उम्र में ही संगीत से प्यार हो गया था। मैं स्कूल की पढ़ाई में भी अच्छा था। मैंने बारहवीं तक हर कक्षा प्रथम दर्जे में पास की है। हिंदी, अंग्रेजी और विज्ञान मेरे पसंदीदा विषय थे। अभी मैं ग्रेजुएशन फाइनल ईयर का छात्र हूं। मैं बचपन में डिस्कवरी चैनल अधिक देखता था। उस वक्त क्रिकेट मेरा पसंदीदा खेल था।
[अभी गया नहीं बचपन]
मैं दुनिया की नजरों में जरूर बड़ा हो गया हूं, लेकिन सच कहूं तो मेरा बचपन अभी गया नहीं है। बस, जिंदगी को देखने का नजरिया बदल गया है। आज मैंने इक्कीस साल की उम्र में अपनी कमाई से मकान, गाड़ी और एक स्टूडियो खरीद लिया है। मैं चाहूंगा कि मेरी तरह ही बच्चे कम उम्र में अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसे पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें।
[रघुवेंद्र सिंह]
[चलता था सीना तान के]
मैं बचपन में बहुत घमंडी और नकचढ़ा था। स्कूल एवं सोसायटी के बच्चों के बीच हमेशा कॉलर ऊपर करके चलता था। मैं खुद शैतानियां करता था और इल्जाम दूसरों पर लगा देता था। दरअसल, मुझे नन्हीं उम्र में इस बात का एहसास था कि मैं मशहूर गायक उदित नारायण का बेटा हूं। साथ ही, मैं बचपन से ही एक्टिंग और सिंगिंग कर रहा था, इसलिए भी अपनी उम्र के बच्चों के बीच सीना तान के चलता था।
[साथ रखता था प्रैंक बॉक्स]
मैं बचपन में प्रैंक बॉक्स हमेशा साथ रखता था। अरे, प्रैंक बॉक्स से याद आया। मैं उस वक्त कक्षा नौ में था। मेरा मुंबई के उत्पल सांघवी स्कूल में एडमिशन हुआ था। एक दिन मराठी भाषा की क्लास चल रही थी और मैं बोर हो रहा था। तभी मेरे हाथ प्रैंक बॉक्स लग गया और मैंने कैंची निकाली। इसके बाद मैंने आगे बैठे लड़के के सिर के पीछे के बाल अजीब ढंग से काट दिए। उसने टीचर से शिकायत कर दी और मेरी मम्मी को स्कूल बुलाया गया। मैं डरा था कि मम्मी मुझे बहुत डांटेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। स्कूल से वापस लौटते वक्त मम्मी ने हंसते हुए कहा कि मैंने भी अपने स्कूल में एक बार ऐसा ही किया था। उसके बाद हम दोनों खूब हंसे।
[रोज शिकायत आती थी घर पर]
मुझे बचपन में पापा से बहुत मार पड़ती थी, जबकि मम्मी केवल डांट कर छोड़ देती थी। दरअसल, कोई न कोई प्रतिदिन मेरी शिकायत लेकर घर आ जाता था। पापा को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आती थी। यही वजह है कि मुझे उनके हाथों मार खानी पड़ती थी। मैं बचपन में मम्मी के अधिक करीब रहा। मैं मम्मी का दुलारा था।
[हर कक्षा में आया फर्स्ट क्लास]
मुझे छोटी उम्र में ही संगीत से प्यार हो गया था। मैं स्कूल की पढ़ाई में भी अच्छा था। मैंने बारहवीं तक हर कक्षा प्रथम दर्जे में पास की है। हिंदी, अंग्रेजी और विज्ञान मेरे पसंदीदा विषय थे। अभी मैं ग्रेजुएशन फाइनल ईयर का छात्र हूं। मैं बचपन में डिस्कवरी चैनल अधिक देखता था। उस वक्त क्रिकेट मेरा पसंदीदा खेल था।
[अभी गया नहीं बचपन]
मैं दुनिया की नजरों में जरूर बड़ा हो गया हूं, लेकिन सच कहूं तो मेरा बचपन अभी गया नहीं है। बस, जिंदगी को देखने का नजरिया बदल गया है। आज मैंने इक्कीस साल की उम्र में अपनी कमाई से मकान, गाड़ी और एक स्टूडियो खरीद लिया है। मैं चाहूंगा कि मेरी तरह ही बच्चे कम उम्र में अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसे पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें।
[रघुवेंद्र सिंह]
1 comment:
अच्छा रहा आदित्य के बारे में यह सब जानना.
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