मुख्य कलाकार : मिथुन चक्रवर्ती, महेश मांजरेकर, रिया सेन, गुलशन ग्रोवर, सीमा बिस्वास, मेघन जाधव, अश्विन चितले आदि।
निर्देशक : गिरीश गिरिजा जोशी
तकनीकी टीम : निर्माता-बसंत तलरेजा और कार्तिकेय तलरेजा, बैनर-जेमिनी मोशन पिक्चर्स, संगीत-बापी टुटुल, गीत-अमिताभ वर्मा और संदीप नाथ।
नए निर्देशक गिरीश गिरिजा जोशी ने फिल्म जोर लगा के हइया में वृक्ष दोहन की समस्या को एक भावनात्मक कहानी के माध्यम से पेश करने की कोशिश है। चूंकि इस वक्त पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिग और गहन पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में निर्देशक का यह प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है, लेकिन फिल्म की कहानी में कसाव एवं पात्रों को सही तरीके से विकसित किया गया होता तो फिल्म में जान आ सकती थी।
बारह वर्षीय करन (मेघन जाधव) मुंबई की हाई सोसायटी में रहता है। उसकी दुनिया उसके दोस्तों तक सीमित है। वे सभी सोसायटी के बाहर रह रहे एक भिखारी (मिथुन चक्रवर्ती) से बहुत डरते हैं। वे उसे रावण कहते हैं। उस पर नजर रखने के मकसद से वे नजदीक स्थित पेड़ पर घर यानी ट्री हाउस बनाते हैं। इसी दौरान उनकी दोस्ती तेरह वर्षीय राम से होती है, जो वहां कंस्ट्रक्शन साइट पर अपनी मां (सीमा बिस्वास) के साथ काम करता है। अचानक बिल्डर बख्शी (गुलशन ग्रोवर) की नजर उस पेड़ पर पड़ती है। वह अपने मैनेजर गुप्ता (महेश मांजरेकर) को उस पेड़ को काटने की हिदायत देता है। वह बिल्डिंग का प्रवेश द्वार वहां बनाना चाहता है। करन और उसके दोस्त एवं रावण मिलकर उस पेड़ को बचाने की कोशिश करते हैं। करन अपने शिक्षित माता-पिता से मदद मांगता है, लेकिन कोई तैयार नहीं होता। अंत में निर्देशक भगवान गणेश का सहारा लेता है।
लेखक-निर्देशक गिरीश गिरिजा जोशी ने भगवान की सहारा लेकर मानव जाति पर कटाक्ष किया है। मिथुन चक्रवर्ती ने भिखारी की भूमिका अच्छी तरह निभायी है। बाल कलाकारों में मेघन जाधव और अश्विन चितले उभरकर सामने आते हैं। रिया सेन का इस्तेमाल फिल्म में ग्लैमर लाने के लिए अनावश्यक रूप से किया गया है। बापी टुटुल का संगीत प्रभावित नहीं करता।
रेटिंग- डेढ़ अंक
-रघुवेन्द्र सिंह
निर्देशक : गिरीश गिरिजा जोशी
तकनीकी टीम : निर्माता-बसंत तलरेजा और कार्तिकेय तलरेजा, बैनर-जेमिनी मोशन पिक्चर्स, संगीत-बापी टुटुल, गीत-अमिताभ वर्मा और संदीप नाथ।
नए निर्देशक गिरीश गिरिजा जोशी ने फिल्म जोर लगा के हइया में वृक्ष दोहन की समस्या को एक भावनात्मक कहानी के माध्यम से पेश करने की कोशिश है। चूंकि इस वक्त पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिग और गहन पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में निर्देशक का यह प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है, लेकिन फिल्म की कहानी में कसाव एवं पात्रों को सही तरीके से विकसित किया गया होता तो फिल्म में जान आ सकती थी।
बारह वर्षीय करन (मेघन जाधव) मुंबई की हाई सोसायटी में रहता है। उसकी दुनिया उसके दोस्तों तक सीमित है। वे सभी सोसायटी के बाहर रह रहे एक भिखारी (मिथुन चक्रवर्ती) से बहुत डरते हैं। वे उसे रावण कहते हैं। उस पर नजर रखने के मकसद से वे नजदीक स्थित पेड़ पर घर यानी ट्री हाउस बनाते हैं। इसी दौरान उनकी दोस्ती तेरह वर्षीय राम से होती है, जो वहां कंस्ट्रक्शन साइट पर अपनी मां (सीमा बिस्वास) के साथ काम करता है। अचानक बिल्डर बख्शी (गुलशन ग्रोवर) की नजर उस पेड़ पर पड़ती है। वह अपने मैनेजर गुप्ता (महेश मांजरेकर) को उस पेड़ को काटने की हिदायत देता है। वह बिल्डिंग का प्रवेश द्वार वहां बनाना चाहता है। करन और उसके दोस्त एवं रावण मिलकर उस पेड़ को बचाने की कोशिश करते हैं। करन अपने शिक्षित माता-पिता से मदद मांगता है, लेकिन कोई तैयार नहीं होता। अंत में निर्देशक भगवान गणेश का सहारा लेता है।
लेखक-निर्देशक गिरीश गिरिजा जोशी ने भगवान की सहारा लेकर मानव जाति पर कटाक्ष किया है। मिथुन चक्रवर्ती ने भिखारी की भूमिका अच्छी तरह निभायी है। बाल कलाकारों में मेघन जाधव और अश्विन चितले उभरकर सामने आते हैं। रिया सेन का इस्तेमाल फिल्म में ग्लैमर लाने के लिए अनावश्यक रूप से किया गया है। बापी टुटुल का संगीत प्रभावित नहीं करता।
रेटिंग- डेढ़ अंक
-रघुवेन्द्र सिंह
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